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२६८ ] सम्पन्न तो पहले ही हो चुकी थी, जीवन्मुक्त दशा पहले ही वे प्राप्त कर चुके थे, परम निर्वाण-विदेह-मुक्ति भी उन्हें प्राप्त हो गई। भगवान् सिद्ध हुए . और गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्रप्ति हुई। . .
___ गौतम स्वामी ने अपनी साधना का अभीष्ट मधुर फल प्राप्त किया। उनकी चेतना पर जो हल्के-से आवरण शेष रह गए थे, वे भी आज निश्शेष हो गए। उन्हें निरावरण उपयोग की उपलब्धि हुई । वे सर्वज्ञ-सर्वदर्शी और अनन्त शक्ति से सम्पन्न हो गए । प्रभु के निर्वाण ने उनकी आत्मा को पूर्ण रूप से जागृत कर दिया। उन्हें महान् लाभ हुआ । एक कारीगर साधारण मलीन रत्न को शाण पर चढ़ा कर चमकीला बना देता है। उसकी चमक बढ़ जाती है और चमक के अनुसार कीमत भी बढ़ जाती है । सत्पुरुष भी उसी कारीगर के समान हैं जो साधारण मानव के मानस में व्याप्त सघन अन्धकार को दूर कर देते हैं और उसमें ज्ञान की चमक उत्पन्न कर देते हैं।
प्रभु का निर्जल व्रत चल रहा था। यद्यपि वे पूर्ण वीतराग, पूर्ण निष्काम और पूर्ण कृत-कृत्य हो चुके थे, तथापि उनकी धर्मदेशना का प्रवाह - वन्द नहीं हुआ था । श्रोताओं की ओर उनका ध्यान नहीं था। छद्मस्थ वक्ता श्रोताओं के चेहरों को लक्ष्य करके, उनके उत्साह के अनुसार ही वक्तव्य देते . हैं । वक्ता को जब प्रतीत होता है कि श्रोता जानकार हैं, ध्यानपूर्वक वक्तव्य . को सुन रहे हैं और हृदयंगम कर रहे हैं तो वह अपनी ज्ञान-गागर को उनके सन्मुख उडेल देता है। इस प्रकार उसका वक्तव्य सामने की स्थिति पर निर्भर रहता है। किन्तु वीतराग की अात्मा में ऐसा विकल्प नहीं होता। उसकी वाणी का प्रवाह सहज भाव से चलता है । वीतराग की वाणी में अपूर्व और अद्भुत प्रभाव होता है । उससे श्रोताओं का अन्तःकरण स्वतः तरोताजा हो जाता है । चित्त में अनायास ही आर्द्रता आ जाती है ।
वीतराग की वाणी की गंगा का परमपावन, शान्तिप्रदायक, शीतल प्रवाह जब प्रवाहित होता है तो क्या सभी उसमें अवगाहन करते हैं ? संसार