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दीपावली की आराधना
दीपमालिका पर्व चरम तीर्थ कर श्रमण भगवान् महावीर की परम पावन स्मृति का जाज्वल्यमान प्रतीक है । प्रभु महावीर के निर्वाण की स्थिति आज के दिन ताजा हो जाती है । भगवान ने इसी दिन निर्वाण लाभ किया था। तभी से यह पर्व लोग अपने-अपने स्तर पर एवं मन्तव्य के अनुसार मनाते आ रहे हैं । कुछ मनीषियों का कथन है कि दीपमालिका पर्व भगवान महावीर के निर्वाण से पहले से ही आर्य जाति में प्रचलित था, परन्तु इस मत की पुष्टि में कोई स्पष्ट और ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।
. , इस अवसर पर दीपमालिका के इतिहास की छानबीन नहीं करना है। यह तो सुनिश्चित है कि या तो पूर्वपरम्परागत इस पर्व को भगवान महावीर के निर्वाण ने सजीव एवं मांगलिक स्वरूप प्रदान किया या भगवान के निर्वाण के कारण ही इस पर्व का प्रतिष्ठान हुआ। दोनों स्थितियों में इस पर्व के साथ भगवान महावीर के निर्वाण का घनिष्ठ सम्बन्ध है।
दीर्घतपस्वी श्रमणोत्तम महावीर जैसे लोकोत्तर महापुरुष की स्मृति में मनाये जाने के कारण यह पर्व भी लोकोत्तर पर्व हैं । अतएव इसे लोकोतर भावना से एवं लोकोत्तर लाभ की दृष्टि से 'मनाना चाहिए।
आज की इस मंगलमय वेला में हम भगवान महावीर की स्मृति को ताजा कर रहे हैं और उन स्मृतियों से जीवन निर्माण का पथ प्रदर्शन भी प्राप्त कर रहे हैं।