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[ २६३ ... पर्व के मंगलमय रूप को सभी अपनाते हैं । जो रागी हैं वे राग की सीमा में पर्व मनाते हैं, भोगी जीव उसे भोग का विशिष्ट अवसर मानते हैं, किन्तु जो विवेकशाली हैं वे पर्व की प्रकृति का विचार करते हैं । सोचते हैं कि इस पर्व के पीछे क्या इतिहास है ? क्या उद्देश्य है ? और वे उसीके अनुरूप पर्व का आराधन करते हैं । जिस पर्व का सम्बन्ध वीतराग पुरुष के साथ हो, उसे रागवर्द्धक ढंग से मनाना वे उचित नहीं मानते । वे सोचते हैं कि यदि पर्व को राग वृद्धि में लगा दिया गया तो पर्व को मनाने का क्या लाभ हैं ? संसारी 'प्राणी का समग्र जीवन ही राग द्वेषवर्धक कार्यों में लगा रहता है, अगर पर्व को
भी ऐसे ही कार्यों में व्यतीत कर दिया जाय तो पर्न की विशेषता ही क्या . रहेगी ? जो पर्न को आमोद-प्रमोद में सीमित कर देते हैं, वास्तव में वे पर्न से "कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं करते। ........ . ...। ... विवेक का तकाजा है कि इस प्रकार के अवसर का कुछ ऐसा उपयोग किया जाय जिससे आत्मा के स्वाभाविक गुणों का विकास हो, · राग-द्वेष की परिणति में न्यूनता पाए; जीवन मंगल साधन बन जाए और प्रात्मोत्थान के पथ पर अधिक नहीं तो कुछ कदम आगे बढ़ सकें। ... बालक हंसना, गाना, खाना, पीना, आदि चहल-पहल हो तो पर्ण मानता है परन्तु समझदार का पर्व अन्र्तमुखी होता है। वह देखना चाहता है कि इन लहरों का मंगलमय रूप क्या है ? वह पन तो शाश्वत एवं वास्तविक कल्याण का साधन बनाता है । मगर सर्वसाधारण लोग ऐसी चिन्ता नहीं करते।
यह चेतनातो उन्हीं प्रबुद्धजनों में जागृत होती है जिनके जीवन में तीव्र विषय .. तृष्णा और कामना नहीं है।
:. सत्यपुरुषों के चरण चिन्हों पर चलकर हम भी अपना उत्थान कर - सकते हैं । उनके चरणचिन्हों को पहचानने के लिए ही पर्वो का आयोजन किया : जाता है । अतएव हमें देखना चाहिए कि किस पर्व की क्या विशेषता है और . : उसके पीछे क्या महत्व छिपा है ?..... ......।