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२३१] यह भांडवृत्ति है। इन विदूषकों के क्रिया कलाप को देख कर लोग प्रसन्न होते हैं और कुत्हलवश जमा हो जाते हैं। भांडचेष्टा करने वाला अपनी इन चेष्टाओं द्वारा अर्थ का उपार्जन करता है। किन्तु साधक को ऐसी चेष्टाए नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से कामराग, हिंसा, असत्य आदि दोषों को प्रोत्साहन मिलता है। अतएव साधक शरीर की कुचेष्टा से अथवा वाणी के द्वारा अनर्थदण्ड न करे।
___ (३) मोहरिए (मौखर्य) आवश्यकता से अधिक बोलना, वृथा बकवाद करना, सदैव बड़बड़ाते रहना मौखर्य कहलाता है । . वाणी मुख की शोभा है । वाणी से मनुष्य की सज्जनता एवं दुर्जनता
का अनुमान होता है । उसके हृदयगत भाव वाणी के द्वारा अभिव्यक्त होते हैं । अतएव वाणी को मनुष्य के व्यक्तित्व की कसौटी कहा जा सकता है। इतना ही नहीं, कभी कभी उसकी बदौलत घोर अनर्थ भी होते देखे जाते हैं। संभल कर वाणी का प्रयोग न करने से लड़ाई-झगड़े तक हो जाते हैं। एक गलत शब्द के प्रयोग से बना-बनाया काम बिगड़ जाता है और एक सुविचारित वाक्य से बिगड़ा काम बन सकता है। विचारपूर्वक न बोलने से मनुष्य अपने शत्रु बना लेता है। इसीलिए कहा जाता है कि पहले तोलो, फिर बोलो। चाहे ज्ञानी हो या अज्ञानी, वाणी का उपयोग अगर सोच विचार कर न करे तो परिणाम अनिष्ट कर निकलता है । कहते हैं-द्रौपदी के एक अविचारित एवं प्राक्षे पजनक वचन की बदौलत महाभारत जैसा भीषण युद्ध हुआ जिसमें लाखों मनुष्य मारे गए और भारतवर्ष की इतनी शक्ति विनिष्ट हुई कि उसकी कमर ही टूट गई। . प्राग पर हाथ रक्खा गया तो चाहे .पण्डित हो. या मूर्ख, दोनों का ही हाथ जलेगा। प्राग पण्डित और मूर्ख का भेद नहीं जानती। उसके स्पर्श का फल सभी को समान रूप से भोगना पड़ता है । इसी प्रकार कुवाणी के प्रयोग को फल सभी के लिए घातक सिद्ध होता है। कुवचन बोलना पाप है और पाप आग की तरह जलाने वाला है । कदाचित् नासमझ बालक आग से हाथ