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२२६] सोचना चाहिये कि वे भी समाज के अंग है और उसी समाज में उन्हें रहना है जिस समाज को वे तीव्रता के साथ पतन की ओर ले जा रहे हैं। हमारे प्राचीन साहित्य में अनेकानेक आदर्श और जीवन को उच्च बनानेवाले पाख्यान विद्यमान हैं । उन्हें सुयोग्य रूप से न दिखलाकर गंदे चरित्रों का प्रदर्शन करना किसी भी दृष्टि से सराहनीय नहीं कहा जा सकता। - जो लोग नैतिक आदर्शों में विश्वास रखते हैं, जो संस्कृति के प्रेमी और धर्मानुरागी हैं उनका कर्तव्य है कि वे इस विषय में समाज को शिक्षित और सावधान करें । इस बुराई को अधिक समय तक नहीं चलने देना चाहिये। . सद्गृहस्थ ऐसे पापप्रचारक कार्यों को नहीं अपनाएगा। धन की प्राप्ति हो तो भी वह पापकृत्यों से दूर रहेगा। लोभ का संवरण किये विना व्रतो की निर्मलता नहीं रह सकतीं।
___ बोलने और लिखने वाले पर बड़ा उत्तरदायित्व रहता है। यदि वह कन्दर्प कथा में लिप्त हो तो हजारों-लाखों को बिगाड़ देगा। जो कन्दर्प कथा लिखता है, कहता है या पढ़कर सुनाता है वह दूसरों के चित पर हिंसा, झूठ,
आरंभ, और कुशील का रंग चढ़ाता है । वह अनर्थ दण्ड का भागी होता है । बोलने वाला जितना अहित करता है, उससे अधिक अहित लिखने वाला करता है । अतः बोल कर या लिख कर धर्म का लाभ देना ही हितकर है। कहा है :
बूट डासन ने बनाया, हमने एक मजमं निखा । मुल्क में मजमू न फैला, और जूता चल पड़ा।
किसी देश का राजदूत या राजनायक कोई गलत बात कह जाय तो सारे देश में आग लग जाती है। आग लगाने और अमृत बरसाने की शक्ति वाणी में है। अगर वारणी अमृत के बदले हलाहल उगलने लगती है तो समाज, देश और विश्व का घोर अहित हो जाता है। भगवान् महावीर कहते हैं । हे साधक ! अपनी वाणी का सदुपयोग करना है तो कर मगर अनर्थ-वाणी का उपयोग तो न कर । यह न भूल कि वाणी और उसमें भी सार्थक वारणी की