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[: २२५ घृणाजनक चित्र उपस्थित किये जाते हैं तब कैसे प्राशा की जा सकती है कि आगे चलकर वे सुसंस्कारी, मर्यादा में चलने वाले और सच्चरित्र बन सकेंगे? ये चित्रपट दर्शकों के जीवन में क्षेत्रों की राह से जो हलाहल विष घोल देते हैं, उससे. उनका समग्र जीवन विषाक्त बन जाता है। नादान बालक भी आजः गली गली में प्रेम के गाने गाते फिरते हैं, यह इन चित्रपटों की ही देन है। .
जनता का अधिक भाग अशिक्षित और असंस्कृत होने से निम्नकोटि के अभिनय और संगीत में रुचि प्रदर्शित करता है । वह निर्लज्जतापूर्ण नग्न या अर्ध नग्न चित्रों को देख कर खुश होता है। इसी कारण धन के लालची चित्रपट निर्माता ऐसे चित्रपट बनवाते हैं और पैसे कमाते हैं। इससे समाज में कितनी बुराइयां फैल रही हैं, इसकी उन्हें चिन्तां नहीं, उन्हें अपनी तिजोरियां भरने की चिन्ता है। आश्चर्य तो इस बात का है कि शासन भी इस ओर ध्यान नहीं देता और देश की उज्जवल संस्कृति के विनाश की चुपचाप बर्दाश्त कर रहा है । देश के नौनिहाल बालकों के भविष्य की भी उसे चिन्ता नहीं है जिन पर देश और समाज का भार आने वाला है।
बहुत-सी कहानियां, उपन्यास, नाटक आदि भी ऐसे अश्लील होते हैं जो पाठकों की रूचि को विकृत करते हैं और कामवासना की वृद्धि करते हैं । इनः सब चीज़ों से विवेकशील पुरुषों को बचना चाहिथे। घर में गंदी पुस्तकों का प्रवेश नहीं होने देना चाहिये। जव तक बालक का संरक्षक किसी चित्रपट को स्वयं न देख ले और संस्कार वर्धक या शिक्षाप्रद न जान ले तब तक बालकों को उसे देखने की अनुमति नहीं देना चाहिये।
एक घटना प्रकाश में आई है । ग्यारह वर्ष के दो वालक चोरी करने निकलते हैं। उनमें से एक चोरी करने निकलता है और दूसरा द्वार पर रिवाल्वर. लेकर खड़ा रहता है सोचिए यह सब किसका प्रभाव है ? वास्तव में यह सिनेमाः .. का ही कुप्रभाव है । ऐसी सैकड़ों घटनायें होती हैं और सिनेमानों की बदौलतः अनगिनती बुराइयां लोगों में प्रवेश कर रही हैं । सिनेमा व्यवसायियों को भी