________________
[ २१५ उसका एक ही दृष्टिकोण रहेगा कि जिन्दगी को सुखमय बनाने के लिए किनकिन उपायों का अवलम्बन किया जाय ? अगर उसके लिए मनुष्य और मनुष्येतरं प्राणियों की हत्या करने की आवश्यकता होगी तो वह बेधड़क करेगा । यह कोरी कल्पना या सम्भावना नहीं, वास्तविक सत्य है । जब-तब समाचार पत्रों से विदित होता है कि थोड़े से पैसों के लिए अमुक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। आज इस देश के एक भाग में डकैतियों का जो दौर चल रहा है, यह क्या है ? भौतिक दृष्टि की प्रधानता का ही यह फल है। अभिप्राय यह है कि जिस की दृष्टि अध्यात्म की ओर प्राकर्षित नहीं हुई वह अपनी निरंकुश आवश्यकताओं की पूर्ति को ही महत्व देगा ।
मगर अध्यात्मवादी का दृष्टिकोण इससे एकदम विपरीत होता है प्रथम तो उसका जीवन इतना सरल सादा और संयमपूर्ण होता है कि उसकी आवश्यकताएं अत्यन्त कम हो जाती हैं और जो भी आवश्यकताएं होती हैं उनकी पूर्ति या तो प्रारंभ के बिना ही हो जाती है या अत्यल्प आरम्भ से । वह भूलकर भी महारम्भ की प्रवृत्ति नहीं करता । वह अपने स्वार्थसाधन के लिए किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाता, बल्कि किसी को कष्ट में देखता है तो उसे कष्ट मुक्त करने का भरसक प्रयास करता है। उसकी इस उदार • वृत्ति का लाभ उसे तो प्राप्त होता ही है, समाज को भी महान् लाभ होता है । वह समाज के समक्ष एक स्पृहणीय श्रादर्श उपस्थित करता है और अासपास वालों के जीवन को भी संयमन की ओर मोड़ देता है ।
उस मनुष्य का ज्ञान और सम्यवत्व, किस काम का जिससे स्वयं का और समाज का पाप न घटा ? ज्ञान भले ही अल्प हो मगर सार्थक वही है जिससे पाप घटे और संयमवृत्ति का पोषण हो । कोट्यधीश आनन्द श्रमणोपासक इसीलिए अपने को महा कर्म बन्ध के पन्द्रह कारणों से निवृत कर रहा है ।
निलछन कर्म और दवाग्निदावरणया कर्म का विवरण पिछले दिनों किया जा चुका है। दावानल लगाने से भले ही समय और धन की बचत हो जाय किन्तु यह कर्म महा हिंसा का कारण है । परिग्रह को बूढ़े के हाथ की