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२१६ ] लाठी समझने वाला उसके अधिक चक्कर में नहीं पड़ेगा। सम्यग्दर्शन सम्पन्न व्यक्ति परिग्रह को बूढ़े की लाठी समझता है । वह उसे सहारा मात्र मानता है। अतः परिग्रह की वृद्धि के लिए महारंभ करके अपनी आत्मा को पतित करना स्वीकार नहीं करेगा। भगवती सूत्र में आग लगाने वाले और बुझानेवाले के लिए क्रिया का विचार चला तो कहा गया
___ जंगल में चलते-चलते कोई दुर्मति आग लगा दे और दूसरा कोई उसे वुझावे तो आग लगाने वाला महारंभी और बुझाने वाला अल्पारंभी समझना चाहिये।
(१४) सरदह लाभ सोसण्या कम्मे-जिस भूमि में जल हो उसमें कचरा मिट्टी आदि डालकर कई लोग उसे सुखा देते हैं। वह भूमि अधिक उपजाऊ है, इस लालच में पड़कर तडाग को सुखाने का काम करता है तो समझना चाहिये कि वह महाहिंसा का काम कर रहा है। सर वे जलाशय कहलाते हैं जो बिना खोदे प्राकृतिक रूप से स्वयं बन गए हैं। और तालाब खोद कर बनाये गये जलाशय को कहते हैं, जिनमें पाल बनाकर जल संचित किया जाता है। इन सभी प्रकार के नलाशयों को सुखाने का धंधा करना कर्मादान है।
___सरों तथा तालाबों को पाट कर मानव जीवन निर्वाह के अनिवार्य साधन जल का विनाश करेगा और जल काय के तथा उसके आश्रित असंख्य
और अनन्त जीवों का हनन करेगा। अमर कोषकार अमरसिंह ने जल के सम्बन्ध में लिखा है
'जीवानु र्जीवनं औषधम् ।' जल को संस्कृत भाषा में 'जीवन' कहा गया है। मनुष्य के पास सोना, चांदी, विशाल कोठी, सुन्दर और मूल्यवान फर्नीचर एवं खाने को मेवामिष्ठान्न न हो तो भी वह जीवित रह सकता है। दुष्काल के समय खेजड़े की छाल, जंगली धान, भुरंट की रोटी, महुआ तथा इसी प्रकार की वस्तुएं खाकर मनुष्य पेट भर लेता है। परन्तु पानी और पवन के बिना काम नहीं चल