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इनमें से अहिंसा और सत्य व्रत के अतिचारों की चर्चा की जा चुकी है। अस्तेय व्रत के भी तीन अतिचारों का निरूपण हो चुका है। यहां शेष दो अतिचारों पर विचार करना है।
(४) होनाधिक मानोन्मान-वस्तु के आदान-प्रदान में तोलने-नापने की आवश्यकता पड़ती है । अनेक व्यापारी लोभ के वशीभूत होकर तोलने और नापने के साधन हीन या अधिक रखते हैं । देते समय हीन वांटो से तोलते और लेते समय अधिक बांटों से । इस प्रकार का तोल-नाप कूट अर्थात् झूठा तोलमाप कहलाता है । यह एक प्रकार की चोरी है । श्रावक को तोलने और मापने में अनुचित-अनैतिक लाभ लेने की प्रवृत्ति नहीं रखनी चाहिए । तिलोकचन्द (तीन पाव), शेरसिंह (सेर भर), पचानदास (१३ सेर), किलोचन्द (एक किलोग्राम) आदि नाम करण करके लाभ लेने की प्रवृत्ति अगर कोई व्यापारी रखता है तो वह अपना इहलोक और परलोक बिगाड़ता है।
तोलने और नापने के साधन सही न रखना राजकीय दृष्टि से भी अपराध है। मापते-तोलते समय उंगली या पांव के अंगूठे से अन्तर करने वाला पापी है । छल या धोखा करके तोल-नाप में घट-बढ़ कर देना पाप की प्रवृत्ति है । जिसने अचौर्य व्रत को अंगीकार किया है, वह इस प्रकार की प्रवृत्ति से सदा दूर ही रहेगा।
कपड़ा, भूमि आदि गजों या मीटरों से मापे जाते हैं। इन मापों में न्यूनाधिक्रता करना, छल-कपट करना इस व्रत का दूषण है।
. छत्र-कपट का सेवन करके, नीति की मर्यादा का अतिक्रमण करके । और राजकीय विधान का भी उल्लंघन करके धनपति बनने का विचार अत्यन्त .. गहित और घृणित विचार है । ऐसा करने वाला कदाचित् थोड़ा बहुत जड़-धन अधिक संचित कर ले मगर अात्मा का धन लूटा देता है । और यात्मिक दृष्टि .. से वह दरिद्र बन जाता है । लौकिक जीवन में वह अप्रमाणिक माना जाता है और स जिस व्यापारी की प्रामाणिकता एक वार नष्ट हो जाती है, जिसे लोग अप्रामा- . णिक समझ लेते हैं, उसको व्यापारिक क्षेत्र में भी हानि उठानी पड़ती है । आप .. भली-भांति जानते होंगे कि पैठ अर्थात् प्रामाणिकता की प्रतिष्ठा व्यापारी की . .