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२०६] ..वाहर की सारी वृत्तियाँ और समस्त व्यापार अहिंसा-सत्य को चमकाने के लिए हैं। जिस प्रवृत्ति से अहिंसा का तेज बढ़ता है वही प्रवृत्ति आदरणीय हैं। प्राणी मात्र को प्रात्मवत् समझने वाला कठोर तपस्या करने वाले के समान होता है । भूत दया ही सच्ची प्रभु भक्ति है।
किसी बादशाह के यहां एक विश्वासपात्र खोजा रहता था। बचपन से ही बादशाह के पास रहा और पला था। वहीं नौकरी करता रहा । जीवन अस्थिर और उम्र नदी के प्रवाह की तरह निरन्तर बहती जा रही है । धीरेधीरे खोजा बूढा हो गया। तब उसने सोचा-जीवन की संध्या वेला प्रा पहुँची है । यह सूरज अब अस्त होने को ही है । बादशाह से अनुमति लेकर 'खुदा की कुछ इबादत कर लू तो आगे की जिंदगी सुधर जाय । उसने बादशाह के पास जाकर अदव के साथ अपनी हार्दिक भावना प्रकट की और कहा-बादशाह सलामत, आपकी चाकरी करते-करते बूढ़ा हो गया हूँ। आपकी कृपा से यह जीवन आराम से बीता है मगर आगे की जिंदगी के लिए भी कुछ कर लेना चाहिए। उसके लिए खुदा की चाकरी करनी होगी। आप आज्ञा दें तो कुछ करूं । मैं मक्का शरीफ की हज करने जाना चाहता हूँ।
बादशाह ने भले काम में रुकावट डालना ठोक नहीं समझा । अतः उसे इजाजत दे दी और उसकी मंशा पूरी करने को कुछ अशफियां भी दे दी। खोजा ने सिर मुंडवा लिया। तीर्थयात्रा के समय कई नियमों का पालन करना पड़ता है। अगर उन नियमों का पालन न किया जाय तो तीर्थयात्रा निरर्थक समझी जाती है । जैसे किसी ने लिखा है-.
तीरथ गया तीन जना, कामी कपटी चोर । गया पाप उतारवा, लाया दस मन और ।
वह नंगे परों बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ यात्रा के लिए रवाना हुआ। रास्ते में उसे एक पहुँचे हुए फकीर मिल गये । वे स्वतंत्र विचार के पहुँचे हुए पुरुष थे । खोजा ने उन्हें सलाम किया । फकीर ने उसकी ओर देखा । खोजा ने कहा-इबादत करने मक्का शरीफ जा रहा हूँ।