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हिमायत करता हुआ भी यह देश किस प्रकार घोर हिंसा की ओर बढ़ता जा रहा है ? देश की संस्कृति और सभ्यता का निर्दयता के साथ हनन करना जघन्य अपराध है ।
यदि कृत्रिम उपायों से गर्भ निरोध न किया जाय तो गर्भ के पश्चात् विवशता या अनिच्छा से ही सही, संयम का पालन करना पड़ता, परन्तु गर्भाधान न होने की हालत में इस संयम पालन की श्रावश्यकता ही कौन समझेगा ? धार्मिक दृष्टि से ऐसा करने में निज गुरणों की हिंसा हैं। शारीरिक दृष्टि से होने वाली अनेक हानियां प्रत्यक्ष हैं । ग्रतएवं किसी भी विवेकवान् व्यक्ति को ऐसा करना उचित नहीं । निलंछन कर्म १२ वां कर्मादान है ।
(१३) दवग्गिदावणिया - जंगल में चरागाह में अथवा खेत में लाग लगा देना दवाग्निदापन नामक कर्मादान है। जिसके यहां पशुनों की संख्या अधिक होती है उसे लम्बा चौड़ा चरागाह भी रखना पड़ता है । घास बढ़ने पर एवं उसे काट न सकने पर जला डालने की आवश्यकता पड़ती है । घास आदि के लिए जंगलों में प्राग लगाई जाती है। सद्गृहस्थ को ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए । फसल बढ़ाने के लिए, अन्य किसी भी प्रयोजन से या जंगलों और मैदानों की सफाई के लिए व्यापक प्राग लगाना घोर हिंसा का कारण है, इससे असंख्य त्रस - स्थावर जीवों का घात होता है। घर में कचरा साफ करते समय आप देख सकते हैं कि किसी जीव का घात न हो जाय किन्तु जब जंगल में आग लगाई जाय तब कैसे देखा जा सकता है ? जीवों की यतना किस प्रकार हो सकती है ? उस सर्वग्रासी आग में सूखे के साथ गीले वृक्ष, पौधे आदि भी भस्म हो जाते हैं। कितने ही कीड़ े-मकोड़ो और पशु-पक्षी श्राग की भेट हो जाते हैं । प्रतएव यह अतीव क्रूरता का कार्य है । मनुष्य थोड़ से लाभ या सुविधा के लिए ऐसी हिंसा करके घोर पापकर्म का उपार्जन करता है | अगर श्रावक को धरू खेत की सफाई का काम करना पड़े तो भी वह अधिक से अधिक यतना से काम लेगा किन्तु ग्राग लगाने का धन्धा तो किसी भी स्थिति में नहीं करेगा ।