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. (१२) निल्लंछण कम्मे (निलंछित कर्म)-जो पशुओं का पालन करता है उसको नर पशुओं के खस्सी करने एवं नाथने का काम भी पड़ जाता है। इस विषय में यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि श्रावक को ऐसा करने की आजीविका नहीं करनी चाहिये । ऐसे हल्के और हिंसाकारी कार्यों से वृत्ति चलाना श्रावक के लिए उचित एवं शोभास्पद नहीं है । जिन्होंने सुदृष्टि प्राप्त . नहीं की है और जो विरति से दूर हैं, वे चाहें जैसा धन्धा करते हैं परन्तु श्रावक ऐसा नहीं करे। पशुओं को पुरुषत्वहीन करने या नाथने के काम में कठोरता से दमन करना पड़ता है। क्योंकि यदि पशु पुरुषत्व हीन न किया जाय तो वह निरंकुश रहता है और मतवाला-सा होकर जल्दी काबू नहीं आता।..फिर भी श्रावक ऐसा धंधा करे और इसे अपनी आजीविका का साधन बना वे, यह किसी प्रकार भी योग्य नहीं है। ..
. देश के दुर्भाग्य से आज ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि मनुष्यों को भी निलंछित किया जा रहा है-सन्ततिजनन के अयोग्य बनाया जा रहा है। पुरुष की नस का ऑपरेशन किया जाता है और स्त्री के गर्भाशय की थैली निकाल ली जाती है । इसी प्रकार के अन्यान्य उपाय भी किये जा रहे हैं । सन्ततिनिग्रह और परिवार नियोजन के नाम से सरकार इस सम्बन्ध में प्रबल आन्दोलन कर रही है और कैम्पों आदि का आयोजन कर रही है। यह सब बढ़ती हुइ जनसंख्या को रोकने के लिए किया जा रहा है । गांधी जी के सामने जब यह समस्या उपस्थित हुई तो उन्होंने कृत्रिम उपायों को अपनाने . का विरोध किया था और संयन के पालन पर जोर दिया था। उनकी दूरगामी . दृष्टि ने समझ लिया था कि कृत्रिन उपायों से भले ही तात्कालिक लाभ कुछ हो. . जाय परन्तु भविष्यत् में इसके परिणाम अत्यन्त विनाशकारी. होंगे । इससे : दुराचार एवं असंयम को बढ़ावा मिलेगा। सदाचार की भावना एवं संयम .. रखने की वृत्ति समाप्त हो जाएगी। .
कितने दुःख की बात है कि जिस देश में भ्रूण हत्या या गर्भपात का घोर तम पाप माना जाता था, उसी देश में आज गर्भपात को वैध रूप देने के प्रयत्न हो रहे हैं । इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि अहिंसा की ।