________________
[२०५ - सम्यग्दर्शन का प्रभाव वड़ा ही विलक्षण है। जब तक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं होता तब तक विपुल से विपुल ज्ञान और कठिन से कठिन क्रिया भी मोक्ष का कारण नहीं होती। वह ज्ञान मिथ्या ज्ञान और चरित्र मिथ्या. चरित्र होता है और वह संसार का ही कारण है। मोक्ष की प्राप्ति में वह सहायक नहीं होता जब आत्मा में सम्यग्दर्शन का अलौकिक सूर्य - उदित होता है तब ज्ञान और चरित्र सम्यक् बन जाते हैं और वे आत्मा को मोक्ष की ओर प्रेरित करते हैं। सम्यग्दर्शन कदाचित् थोड़ी-सी देर के लिए-अन्तर्मुहूर्त . मात्र काल के लिए ही प्राप्त हो और फिर नष्ट हो जाय तो भी आत्मा पर ऐसी छाप अंकित हो जाती है कि उसे अर्धपुद्गलपरावर्तन काल में मोक्ष प्राप्त हो ही जाता है । सम्यग्दर्शन वह आलोक है जो आत्मा में व्याप्त मिथ्यात्व अन्धकार को नष्ट कर देता है और आत्मा को मुक्ति की सही दिशा और सही राह दिखलाता है। ____ आनन्द ने सुदृष्टि प्राप्त करके सम्यक्त्व सामायिक, श्र.तसामायिक और देश विरति सामायिक प्राप्त की। उसकी बहिष्टि नष्ट हो गई वह अन्तर्मुख हो गया। भगवान् उसे व्रती जीवन में आने वाली बाधएं बतला रहे हैं जिससे वह दोषों से बचकर निर्मल रूप से व्रतों का पालन कर सके। ... सातवें व्रत का स्पष्टीकरण करते हुए वाणिज्य सम्बन्धी महा हिंसा से ..
बचने का उपदेश दिया, बतलाया कि कोल्हू, ची, चक्की आदि यन्त्रों को • चलाने की आजीविका करना श्रावक के लिए उचित नहीं है क्योंकि यह . महारम्भी कार्य हैं । यन्त्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के उपयोग से भी श्रावक
यथासम्भवः अपने आपको बचावे तो उन्हें प्रोत्साहन न मिले और यन्त्र के प्रयोग से होने वाली अनेक हानियों से बचाव हो सके किन्तु आज की विषम स्थिति में इन यन्त्रो के कारणं गृहस्थ अल्पारंभी से महारंभी बन जाता है । श्रावक को कम से कम महारंभ और महाहिंसा से तो बचना ही चाहिये । यदि वह महारंभ और तज्जनित महाहिंसा के कार्य करता रहा और लालच में पड़ा
रहा तो.वीतरागः भगवान् का अनुयायो कहला कर भी उसनें क्या लाभ प्राप्त । .. किया ?
-