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. [२०६ ... फकीर ने कहा-अगर मक्का शरीफ की हज़ का फायदा यहीं मिल जाय तो? .
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... खोजा बोला-तब तो कहना ही क्या ! नेकी और पूछ-पूछ !
फकीर ने उसे एक पेड़ के नीचे बैठने को कहा और सूचना दी कि बाहर की ओर से मन मोड़ लो और ध्यान लगाओ। खुदा को यहीं अन्तर्दृष्टि में .... लाने की कोशिश करो। अगर प्रम की मस्ती में आ गए तो. हज करने जाने की जरूरत नहीं होगी।
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खोजा श्रद्धा वाला व्यक्ति था। उसे फकीर के वचनों पर विश्वास प्रा गया । भूख-प्यास, खाना-पीना सब भूल गया और मस्त हो गया । उसकी मस्ती की बात बस्ती में फैल गई। लोगों ने कहा-कोई बड़े औलिया पाए . . हैं। और वे उसके लिए दूध, फल आदि लाने लगे, मगर उसे परवाह नहीं है किसी चीज की । खाया खाया, न खाया न सही । वह अलमस्त होकर ध्यान में लीन रहने लगा।
बास फैलते-फैलते बादशाह के कानों तक जा पहुँची। नगर के बड़ेबड़े लोग उसके दर्तन के लिए जाने लगे । औलिया अपने स्वरूप में लीन रहने लगा। न उसे अपने शरीर का भान था, न मकान की चिन्ता थी। जैसे वह शरीर में रहता हुआ भी उससे अलग था।
बादशाह ने सोचा-फकीर साहब के दीदार तो अवश्य करना चाहिए। अब तक वहाँ एक छोटी-सी झोंपड़ी बन चुकी थी और उसमें दरवाजे की जगह एक टाटी लग गई थी। किसी ने फकीर को बादशाह के आने की खबर दी तो फकीर ने वह टाटी बन्द कर ली और पैर फैला दिए। जब बादशाह वहाँ पहुँचे तो टाटी को कियाया गया मगर टाटी नहीं खुली 1 बाहर से आवाज दी गई-बादशाह सलामत पधारे हैं, दरवाजा खोलिए मगर फकीर के लिए क्या गरीब क्या अमीर सब, बराबर हैं।
जिसके हृदय से परिग्रहवृत्ति हटी नहीं है, लोभ-लालच गया नहीं है, जो आशा का दास है और पैसे को बड़ी चीज समझता है, वह धनवान् के