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[२०१ जेसे आन्दोलन चल रहे हैं। यह सब बड़ा विषम चक्र है। एक ओर यन्त्रों का अधिक से अधिक प्रयोग करने की नीति को अपनाना और दूसरी ओर
आर्थिक समता को स्थापित करने के मार्ग पर चलना परस्पर विरोधी नीतियां हैं। पर इसका विचार किसको है ?
जिन देशों में जनसंख्या कम है और कार्य करने के लिए मजदूर दुर्लभ. हैं, वहां यन्त्रों का प्रयोग किया जाना समझ में आने योग्य है, किन्तु भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश में छोटे छोटे कामों के लिए, जैसे आटा पीसने, दालें, बनाने, धान कूटने, गुड़ बनाने आदि के लिए भी यन्त्रों का उपयोग करना. अत्यन्त अनुचित्त है। यह गरीबों के काम को समाप्त करने के समान है।
पहले महिलाएं हाथ से आटा पीसती थीं, स्वयं पानी लाती थीं और धान आदि कूटती थीं तो शारीरिक श्रम हो जता था और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता था। आज ये सब काम मशीनों को सौंप दिये गये हैं । इनके बदले उनके पास अन्य कोई कार्य नहीं रह गया है । अतएव घरों में अधिकांश महिलाएं प्रमाद में जीवन व्यतीत करती हैं । जब सामने कोई काम नहीं होता तो. अडौसी-पड़ौसी लोगों की निन्दा और विकथा में उनका समय व्यतीत होता है । इस प्रकार स्वास्थ्य, धर्म और धन सभी की हानि हो रही है। __ . आम तौर पर देखा जाता है कि यंत्रों से जो खाद्य पदार्थ तैयार होते हैं, उनका सत्त्व नष्ट हो जाता है । पदार्थों के पोषक तत्त्व को यंत्र.चूस लेते हैं । परिणामस्वरूप जनता का शारीरिक सामर्थ्य घटता जाता है, रोगों के
आक्रमण का प्रतिरोध करने की शक्ति क्षीण होती जाती है । परिणाम यह होता है कि मदिरा, अंडे के रस तथा मछलियों के सत्त्व आदि से निर्मित दवाइयों का प्रचलन बढ़ता जाता है । लोग प्रत्यक्ष हिंसा को तो देख भी लेते हैं मगर परोक्ष हिंसा की इस लम्बी परम्परा को जो इन यंत्रों के प्रयोग से .. होती है, बहुत ही कम सोच पाते हैं।
धार्मिक दृष्टि से स्वयं यंत्र चलाने वाला कृतपाप का भागी होता है । साझीदार समर्थन से पाप कराने के अधिकारी होते हैं और यंत्र से तैयार