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२००] अत्यन्त दयालु थे। श्रावक के हृदय में ऐसी दयालुता होनी चाहिये । जिसके अन्तः करण में दया होती है वह अन्य व्रतों को भी निभा सकता है ।।
. (११) जंतपीलण कम्मे (यन्त्र पीड़न कर्म)-यन्त्र के द्वारा किसी सजीव वस्तु को पीलना यन्त्रपीड़न कर्म नामक कर्मादान है। घानी, चरखी, कोल्हू, चक्की आदि यन्त्र प्राचीन काल में इस देश में प्रचलित थे। गन्नों को और तिल्ली, अलसी आदि के दानों को कोल्हू आदि में पीला जाता था, इस समय भी पीला जाता है। मगर इस युग में एक से एक बढ़कर देत्याकार यन्त्रों का निर्माण हो चुका है, जिनमें मनों और टनों तिल आदि बात की बात में पीले जा सकते हैं। बोरे के बोरे तिल आदि यन्त्रों में उण्डेल दिये जाते हैं और उनका कचूमर निकाल लिया जाता है।
आटे की चक्की चलाना शायद यन्त्र पीड़न कर्म न समझा जाता हो, मगर गम्भीरता से सोचने की बात है कि उससे कितनी हानि हो रही है, कितना पाप हो रहा है। जिन ग्रामों में अभी तक चक्की नहीं पहुंच पाई, वहाँ चक्की लगाने को लोग, उत्सुक रहते हैं। चक्की लगने से तन को आराम, समय की बचत और पैसे की बचत समझी जाती है। किन्तु यह सबं प्रतीत होने वाले लाभ ऊपरी दृष्टि से प्रतीत होते हैं। महात्मा गांधी जी बड़ी-बड़ी मशीनों के उपयोग के विरोधी थे। उनकी दृष्टि गहरी थी। वे दीर्घ दृष्टि से सोच-विचार करते थे । हमें भी गहराई से सोचना चाहिये । धार्मिक दृष्टि से इन यन्त्रों का प्रयोग करने से, घोर अयतना और इस कारण हिंसा होती है । इसके अतिरिक्त अन्य व्यावहारिक दृष्टियों से भी यन्त्रों का प्रयोग हानिकारक है। ये भीम काय यन्त्र हजारों मनुष्यों द्वारा हाथों से किये जाने वाले कार्य को चटपट निपटा देते हैं । परिणाम यह होता है कि मनुष्यों में बेकारी फैलती. है। उनकी आजीविका नष्ट हो जाती है। इस प्रकार मनुष्य बेकार होकर दुखी जीवन यापन कर रहे हैं। इन यन्त्रों की बदोलत ही हजारों-लाखों मनुष्यों की आय गिने-चुने धनवानों की तिजोरियों में एकत्र होती हैं, जिससे
आर्थिक विषमता बढ़ रही है और उस विषमता के कारण वर्गसंघर्ष हो रहा है। इसी विषमता की खाई को पाटने के लिए साम्यवाद और समाजवाद