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[१७६ । जनसाधारण के जीवन को शुद्ध और नीतिमय बनाये रखने के लिए उसमें धर्म भाव जागृत करना उपयोगी है। धर्मभाव से जीवन में जो परिवर्तन होता है वह स्थायी और ठोस होता है । दण्ड के भय में यह सामर्थ नहीं है। - इसी कारण भगवान् महावीर ने दण्डविधान का नहीं, प्रेम का, धर्म का मार्ग बतलाया है । उन्होंने मनुष्य के हृदय को परिवर्तित कर देने पर जोर दिया है। विचार को सम्यक् बना देने अर्थात् सही दिशा देने की आवश्यकता दर्शायी है। विचार की शुद्धि होने पर प्राचार आप ही आप शुद्ध हो जाता है।
धर्मशास्त्र का राज्य मन पर और कानून का राज्य तन पर होता है।
गांधीजी ने अपने जीवनकाल में शराबबंदी पर बहुत जोर दिया था। मगर वर्तमान शासन व्यापक रूप में मद्यनिषेध करने में हिचक रहा है। किसी किसी प्रान्त में मद्यनिषेध का कानून बना भी तो पूरी तरह सफल नहीं हो सका। कानून के साथ जनता में धर्मभावना उत्पन्न किये बिना सफलता प्राप्त होना शायद ही संभव हो सके।
महुआ, खजूर, चावल, ताडी, गुड़ आदि चीजों को मद्य बनाने के लिए सड़ाया जाता है। जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति होने पर ही सड़ांद है वहां जीवजन्तुओं की उत्पत्ति अनिवार्य है। हर तरह की शराब में चीजों को सड़ाना आवश्यक होता है । अतएव मदिरा बनाना, बेचना और पीना, सभी घोर पाप का कारण है।
मदिरा पीने से क्या-क्या हानियां होती हैं, यह बतलाने की आवश्यकता नहीं । वे हानियां इतनी प्रकट हैं कि प्रत्येक मनुष्य उनसे परिचित है। मदिरा बुद्धि को बल को एवं कीर्ति को नष्ट कर देती है
बुद्धि लुम्पति यदद्रव्यं मदकारितदुच्यते ।
बुद्धि का विनाश या लोप करने वाली जितनी चीजें हैं, वे सब मदिरा श्रेणी में गिनी जाती हैं। क्यों कि उनका परिणाम लगभग एक-सा होता है।
___ जिसका उपयोग न किया जाय अथवा जिसका उपयोग अत्यन्त हानि• कारक हो, जीवन को बर्बाद करने वाला हो और जिसको लोग घृणा की दृष्टि