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..१८०] .. से देखते हों, उसका वाणिज्य क्यों किया जाय ? अपने और अपने परिवार की उदर पूर्ति केलिए दूसरे लोगों के जीवन को नष्ट करने में सहायक होना समझदार मनुष्य का काम नहीं है । जिस मदिरापान से हजारों का जीवन भयानक अभिशाप बन जाता है, हजारों परिवार नष्ट हो जाते हैं और दुर्गति को प्राप्त होते हैं, उसका व्यापार भले आदमी के लिये कैसे उचित है। श्रावक ऐसा व्यापार कदापि नहीं करेगा । उदरपूर्ति के साधनों की कमी नहीं है । वह कोई भी अन्य धंधा करके अपना निर्वाह कर लेगा, गरीबी में जीवन व्यतीत कर लेगा, परन्तु ऐसे विनाशकारी पदार्थों के व्यापार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सम्मिलित नहीं होगा। - इस प्रकार के खरकर्म करने से बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार की हानियाँ होती हैं, अतएव वीतराग भगवान् की वाणी के अमृत का प्रास्वादन करने वाला श्रावक इस रस-वाणिज्य से अवश्य दूर रहेगा। उसे तो परम श्रेयोमय प्रशम का लोकोत्तर रस प्रवाहित करना है, अनन्त जन्मों का लाभकारी वाणिज्य करना है। वह अपने परिवार, ग्राम, नगर और देश में उपशम को वितरण करेगा और अपने तथा दूसरों के कल्याण में सहायक बनेगा।
___ आनन्द जब भगवान् महावीर के निकट व्रत ग्रहण करके घर पहुँचा तो उसने तुरन्त ही अपनी धर्मपत्नी शिवानन्दा को भी व्रत ग्रहण करने को भेजा। ऐसे अनेक श्रावकों ने ज्ञान और उपशम का वितरण किया है। उन्होंने गृहस्थी में रहकर मदिरा-रस न पिला कर ज्ञान का रस पिलाया। और अपना कल्याण किया।
भङ्ग भी मदिरा की छोटी बहिन है । नासमझ लोग ज्ञान और उपशम का रस नहीं पिला कर उत्सवों के अवसर पर उन्मत्त बनाने वाला रस पिलाते हैं। मदिरा जैसी नशैली वस्तुएं थोड़ी-सी तरी पहुँचा कर भीतर का रस चूस लेती हैं । मजदूरों और पिछड़े वर्ग के लोगों की स्थिति इसी कारण खराब होती है कि वे शराब जैसी चीजों का उपयोग करते हैं । इन मादक पदार्थों के चंगुल में पड़ कर वे अपने सारे परिवार को विनाश की ओर ले जाते हैं। पहले तो लोग कुतूहल से प्रेरित होकर नशैली चीज़ का सेवन करते हैं, मगर धीरे-धीरे वह