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.. [ १७१ .. प्रचार और आन्दोलन किया था, किन्तु अब देश स्वतन्त्र हो गया है और गाँधीजी के अनुयायियों के ही हाथ में सत्ता है फिर भी वह वन्द नहीं हो रहा । क्योंकि मद्यनिषेध से सरकार की आय में कमी होगी और मद्यपान करने वाले लोग रुष्ट हो जाएंगे तो 'वोट' नहीं देंगे, इस भय से सरकार अब इस ओर ध्यान नहीं देती । कहावत है.-'चोरा कुतियां मिल गये, पहरा किसका देय !' __.. देश राजनीतिक दृष्टि से स्वाधीन हुआ तो भारतीय नेताओं ने प्रजातंत्र.की पद्धति पसंद की । इस पद्धति में प्रजा के नुमाइंदों के हाथ में शासन रहता है। यह पद्धति अन्यान्य शासन पद्धतियों से उत्तम मानी गई है मगर इसकी सफलता के लिए प्रजा का सुशिक्षितन और योग्य होना भी आवश्यक है। जब तक जनसाधारण में नैतिक भावना उच्चकोटि की न हो, प्रादर्शों और सिद्धान्तों की समझ न हो और व्यापक राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हित से ऊपर समझने की वृत्तिन हो तब तक इस शासन पद्धति की सफलता संदिग्ध ही . रहती है । आज देश में प्रजातंत्र के प्रति जो अनास्था उत्पन्न हो रही है, उसका कारण यही है कि अशिक्षित जनता से वोट प्राप्त करने के लिए उसको नाराज नहीं किया जा सकता और उसमें घुसी हुई मदिरापान जैसी बुराइयों के विरुद्ध कदम उठाने का भी साहस नहीं किया जा सकता। इससे देश को हानि पहुँती है। बालक कितना ही रुष्ट क्यों न हो,. माता-पिता का कर्तव्य है कि वह उसे कुमार्ग पर जाने से रोके ।
राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए लम्बे काल तक संघर्ष चलता रहा। इस संघर्ष में भाग लेने वालों ने लाठियों की मार झेली, गोलियां खाई, करावास के कष्ट सहन किए, कइयों ने अपना सर्वस्व होम दिया। ये सब प्रतिकूल उपसर्ग थे, जिन्हें उन्होने शान्ति के साथ सहन किया। किन्तु जब संघर्ष के फलस्वरूप स्वतंत्रता प्राप्त हुई और इन योद्धाओं को शासनसत्ता मिली तो उनमें से कइयों का अधःपतन हो गया, कई भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए और स्वार्थ साधने लगे। इस प्रकार अनुकूल उपसार्ग को वे नहीं सहन कर सके।
__सिंह की गुफा में तपस्या करने वाले मुनिराज की भी यही स्थिति हुई। प्रतिकूल परीषह को जीतने में तो वे समर्थ सिद्ध हुए मगर अनुकूल परीषह