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... बनी वस्तुओं का विक्रय होता है, उनमें जब कभी विस्फोट हो जाता है तो ..
आस-पास की दुकानें, मकान और मनुष्य तक जल कर भस्म हो जाते हैं। अतएव हिंसाकारी पदार्थों के व्यापार से श्रावक को सदैव वचते रहना चाहिए। ऐसे धंधे करके मनुष्य जो धन एकत्र करता है, वह धन नहीं, विष है जो थोर अनर्थ का कारण है। .. कई दुकानदार सार्वजनिक उपयोग की अनेक वस्तुएं अपनी दुकान में रखते हैं और फटाके भी बेचने के लिए रख लेते हैं । सोचने की बात है कि भला फटाकों से वे कितना धन संचित कर लेंगे ? वास्तव में इस प्रकार के व्यापार से लाभ कम और हानि अधिक होती है। सामाजिक और राष्ट्रीय हानि भी इससे कम नहीं है । प्रतिवर्ष दीपावली आदि के अवसरों पर न जाने कितने रुपयों की बारूद फटाके आदि के रूप में भस्म कर दी जाती है । करोड़ों का स्वाहा हो जाता है। लाभ तो कुछ होना नहीं, हानि ही हानि होती है । करोड़ों की सम्पनि नष्ट होती है और सैकड़ों बालक जल. जाते और जल कर मर जाते हैं । एक ओर शिकायत की जाती है कि देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और दूसरी ओर इतनी बड़ी धनराशि एक खतरनाक और हत्या- . . . कारी मनोरंजन के लिए नष्ट कर दी जाती है । फटाके बनाने में जो सम्पदा स्वाहा होती है, उसे अच्छे कार्य में लगाया जाय तो देश का भला हो
सकता है। . ... किन्तु खेद की बात है कि धनी लोग त्योहारों में दामाद को सौगात में मिष्ठान के साथ फटाके भी भेज दिये जाते हैं । क्या जमाई को . सम्मान करने का यह अच्छा तरीका है ? किन्तु कौन इस पर विचार करे ! आज लोगों का विवेक-दीपक बुझ रहा है । बुद्धि पर पर्दा पड़ रहा है। ............
... · धर्म एकान्त मंगलमय है । आत्मा, समाज, देश तथा अखिल विश्व का कल्याणकर्ता और बाता है । मगर आज धर्म की ज्योति मंद हो रही है। लोग धर्म के वास्तविक मर्म को समझने का प्रयत्न नहीं करते और जो थोड़ाबहुत समझते हैं, उसे आचरण में नहीं लाते । उनका खयाल है कि धर्म के आचरण से उनके लौकिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी; मगर यह धारणा