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सुहाग का चिह्न समझता है, उस मनुष्य से यह आशा कैसे की जाय कि वह जानवरों के प्रति न्याय करेगा। उनके अधिकारों का अपहरण नहीं करेगा?
हाथी दांत की अनेक वस्तुएं बनती हैं। पहले उसकी चूड़ियाँ पहनी। जाती थीं। आज कल भी राजस्थान में बाहुओं पर आभूषण के रूप में हाथी दांत पहनने का रिवाज है । वह मंगल सूचक माना जाता है। मगर आम तौर पर अब प्लास्टिक की चूड़ियों ने हाथीदांत का स्थान ले लिया है। हाथीदांत के चूड़ों का प्रचलन बन्द करने के लिए साधकों को बड़ी प्रेरणा देनी पड़ी थी।
आनन्द के समय में दन्त वाणिज्य बहुत होता था, अतएव इसको रोकने । के लिए भगवान् महावीर स्वामी को इसके त्याग का खास तौर से उपदेश देने को आवश्यकता हुई । दांतों को प्राप्त करने के लिए हिंसा तो होती ही है, अगर संभाल कर न रक्खा जाय तो उनमें त्रस जीवों की उत्पत्ति भी हो जाती है और फिर उनकी हिंसा का भी प्रसंग उपस्थित होता है । इस प्रकार हिंसा जनक होने के कारण दन्तवाणिज्य कर्मादानों में परिगणित किया गया है । यह वाणिज्य व्रतधारी श्रावक के लिए सर्वथा त्याज्य है ।
(७) लक्ख वारिणज्जे (लाक्षा वाणिज्य)-लाख का व्यापार करना लाक्षावाणिज्य कहलाता है, इस व्यापार में लाखों जीवों की हिंसा होती है । गोंद वृक्ष का रस है, चपड़ी श्लेषक (चिपकाने वाली या जोड़ने वाली) वस्तु है । रबड़ भी ऐसी वस्तु है । इन चीजों में चिपक कर जीव-जन्तु प्राणों से हाथ धो बैठते हैं । अतएव लाख का व्यापार श्रावक के लिए त्याज्य है ।
इन कर्मादनों में हिंसा की बहुलता की दृष्टि रक्खी गई है । अतएव दांत या लाख के वाणिज्य के समान जिन अन्य वस्तुओं के व्यापार से प्रचुर हिंसा होती है, उन्हें भी यथायोग्य इन्हीं वाणिज्यों में अन्तर्गत कर लेना चाहिए और उनके व्यापार से भी बचना चाहिए।
बारूद भी इसी प्रकार की हिंसाकारक वस्तु है.। उसकी बनी अनेक । वस्तुओं से बहुत हिंसा होती है । बारूद से दुकानों और घरों के जल जाने की घटनाएँ प्रायः पढ़ने-सुनने में आती ही रहती हैं । जिन दुकानों में बारूद की