________________
। १६७
भ्रम में न पड़ । थोड़ा आगे का भी विचार कर । जब दांतों का संग्रह और उपयोग अधिक परिमाण में होगा तो वे पाएं गे कहाँ से ? अाखिर उनके लिए हाथियों की हत्या करनी पड़ेगी या जीवित हाथियों के दांत उखाड़े जाएंगे। दांत उखाड़ने में हाथी को कितनी पीड़ा होती है, यह तो भुक्तभोगी ही जान सकते हैं । खुराक के लालच में पड़ कर और स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी भोग के आकर्षण में पड़ कर हाथी पकड़ में आजाते हैं । सांभर आदि पशुओं के सींगों के लिए उनकी हत्या की जाती है। .. .. . ..
हाथी को पकड़ ने के लिए अनेक तरीके काम में लाए जाते हैं । कहते हैं-एक वड़ा-सा गड्ढा खोदं कर उस पर बांसों की एक जाली सी बिछा दी जाती है । उस पर हाथी को लुभाने के लिए कृत्रिम हथिनी बना कर खड़ी कर दी जाती है अथवा कोई खाद्य पदार्थ रख दिया जाता है । हथिनी अथवा खाद्य वस्तु को देख कर हाथी प्रलोभन में पड़ कर उस पर चला जाता है और गड्ढे में गिर जाता है । गड्ढे में गिरने के बाद उसे कई दिनों तक भूखा-प्यासा रक्खा जाता है । तत्पश्चात् थोड़ी-थोड़ी खुराक दे कर उसे वशीभूत किया जाता है।
वीहड़ वनों में प्रकृति की असीम सम्पदा बिखरी पड़ी है । अपनी बढ़ीचढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव वनों पर भी आक्रमण करता है और उस सम्पदा को लूटता है । जब वन्य सम्पदा लुट जाती है और पशुओं को पर्याप्त खुराक नहीं मिलती तब वे खेतों की ओर बढ़ते हैं । अगर मनुष्य वनों को पशुओं के लिए छोड़ दे तो उन्हें खेतों को उजाड़ने की आवश्यकता ही न हो! . किन्तु मानव तो यही समझता हैं कि सारी धरती का पहा ईश्वर ने उसी को लिख कर दे दिया है । मनुष्य के अतिरिक्त मानों अन्य किसी प्राणी को जीवित रहने का अधिकार ही नहीं है, कैसी संकीर्ण भावना है । कितनी अधम स्वार्थान्धता है। ..
. जो मनुष्य हाथी के दांतों का उपयोग करने के लिए बड़े-बड़े हाथियों का वध करता है और उस वध के परिणाम स्वरूप तैयार होने वाले चूड़ों को