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मरते हैं, इस बात का विचार करने वाले कितने हैं ? जिस सवारी में जानवर जोता जाता है, उससे हिंसा की संभावना बहुत कम रहती है । विषम परिस्थिति में अथवा किसी दूसरे जानवर के सामने आ जाने पर जुता हुअा जानवर अपनी गति धीमी कर लेता है और दुर्घटना को या हिंसा को बचा लेता है । यह बात वेग के साथ दौड़ने वाली गाड़ियों में कैसे संभव हो सकती है ? ये वेगवान् गति वाली गाड़ियाँ महारम्भ और महाहिंसा की जननी हैं । व्रती श्रावक सदैव अपने विवेक की तराजू पर तो लेगा कि किस कार्य से महारंभ होता है और कौन-सा कार्य अल्प प्रारंभ वाला है ? वह महारंभ के कार्य को कदापि नहीं करेगा। भाडीकम्मे घोर हिंसा का कारण होने से महारंभ है और इसी कारण श्रावक इसे नहीं अपनाता।
(५) फोड़ी कम्मे (स्फेट कर्म)-इसका अर्थ है भूमि को फोड़ना । वैज्ञानिक साधनों द्वारा सुरंग आदि लगा कर भूमि का भारी भाग फोड़ दिया जाता है । कुदाली फावड़ा आदि से जमीन फोड़ने से भी बस-स्थावर जीवों की हिंसा होती है। पड़ती जमीन में जीव-जन्तु निर्भय हो कर आश्रय लेते हैं ? उसी प्रकार जैसे कमरे में सफाई न हो तो कीड़े-मकोडे दोमक आदि अपना अड्डा जमा लेते हैं। ऐसे स्थानों को सुरक्षित, भय-वजित तथा मनुष्यों के संचार से रहित समझ कर वे वहां ग्रावास करने लगते हैं। दरारों में, जमीन के नीचे, ... पत्थरों की आड़ में हजारों जीव-जन्तु शरण लिए रहते हैं। ऐसी स्थिति में सुरंग लगाने वाले कहां तक जीव-जन्तुओं की रक्षा कर सकेंगे ! जहां भूमि फोड़ी गई और मिट्टी डाली गई, दोनों स्थानों के जीवों की रक्षा संभव नहीं है । अतएव भूमि को फोड़ने का धंधा करना विशेष हिंसा कारक होने से कर्मादान में गिना गया है।
व्यापार-धंधे में सामाजिक दृष्टि कोण को भी प्राचीन काल में महत्त्व दिया जाता था। यहां भी उस दृष्टि कोण से विचार किया जा सकता है। प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में अमुक-अमुक वर्गों में अमुक-अमुक धंधों का बंटवारा किया गया था। इस बंटवारे के कई लाभ थे। प्रथम तो जिस वर्ग का जो .... धंधा हो उसे वही वर्ग करे तो बेकारी की संभावना कम रहती है । एक वर्ग के