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१५०] लोगों का काम दूसरे वर्ग के लोग हथिया ले तो पहले वर्ग में बेकारी फैलती है । स्मृतियों में इस दृष्टि कोण का प्रतिपादन किया गया है। . इस व्यवस्था का दूसरा लाभ है वर्ग संघर्ष न होना । ब्राह्मण अध्यापन कार्य करे, अन्य भाजीविका न करे, व्यापार-वाणिज्य में हाथ न डाले तो पारस्परिक संघर्ष नहीं होगा।
सभी वर्ग अपना-अपना पैत्रिक धंधा करें तो समाज में शान्ति बनी रहती है और उनके पारस्परिक व्यवहार में मधुरता रहती है । श्रीमन्त वैश्य खान खोदने का भी काम अपने हाथ में ले ले तो खान खोदने का धंधा करने वाले वर्ग के साथ उनका सम्बन्ध मधुर नहीं रह सकता।
तीसरा लाभ यह है कि पितृ परम्परा से चले आए धंधे को अपनाने से धंधा सम्बन्धी कौशल की वृद्धि होती है । लुहार का लड़का बचपन से ही अपने घर के धंधे को देखता-देखता और अभ्यास करता-करता उसमें विशेष कुशल बन जाता है । वणिक पुत्र अगर उस धंधे को अपना ले तो वह उतना निष्णात नहीं हो सकता।
अल्प लोभी श्रावक विना कटुकता के महावीर के मार्ग पर चल कर इहलोक-परलोक सम्बन्धी लाभ प्राप्त कर सकता है। किन्तु जो तृष्णा और लोभ की अधिकता से ग्रस्त है और अर्थ को अनर्थ न समझ कर उसी को एक मात्र परमार्थ मानता है वह वीतराग के उपदेश पर किस प्रकार चल सकता
प्रजापति लम्बकर्ण (गधा) पर भांड या अन्न लाद कर ले जा रहा हो और लम्ब कर्ण को कहीं रास्ते में श्मशान की राख दिख जाय तो वह प्रजापति की हानि की चिन्ता नहीं करके एक बार उसमें लोट कर खेल कर ही देगा।
अरे उस गधे को क्या हंसते हो, अपने को हंसो जो वीतराग के उपासक और वीतरागवाणी के भक्त कहलाते हुए भी विषय-कषाय की राख में लोट लगा रहे हो!
उत्तम जाति का अश्व कदापि ऐसा नहीं करता। जो मानव मखमल के