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________________ पर AU १२६ है और जब कामना पर काबू पा लिया जाता है तो सभी दुर्गुण दूर हो जाते हैं। एक उक्ति प्रसिद्ध है बुभुक्षितः किन्न करोति पापम्, क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्ति । भूख की अन्तर्वाला से जो जल रहा है, वह करूणाहीन बन जाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सर्पिणी १०८ अंडे देती है परन्तु उन्हें खा जाती है । कुतिया भी भूख की मारी अपने बच्चे को निगल जाती है। सद्यः प्रसूता कुतिया को भोजन देने की प्रथा इसी कारण प्रचलित है। ऐसे प्राणी उपदेश के पात्र नहीं हैं क्योंकि असह्य भूख से प्रेरित हो कर ही वे ऐसा करते हैं । मगर जिस मनुष्य में इतना सामर्थ्य है कि अपनी भूख मिटा कर दूसरों को भी खिला दे, वह यदि करुणाहीनता का काम करता है तो यह स्थिति अत्यन्त दयनीय और शोचनीय है। ' जो मनुष्य स्थावर और त्रस जीवों के बचाव का ध्यान रखने वाला है, उससे क्या यह आशा की जा सकती है कि वह मनुष्यों के उत्पीड़न में निमित्त बनेगा ? वह जान-बूझ कर कदापि ऐसा नहीं करेगा कि किसी का जीवन या किसी की जीविका का उच्छेदन करके अपना स्वार्थ सिद्ध करे। जो भगवद्भक्तिपरायण है, उससे ऐसी आशा नहीं की जा सकती, क्योंकि भगवान् की भक्ति का उद्देश्य 'अपने जीवन को सद्गुणों के सौरभ से सुरभित करना है, परमात्मा के गुणों को अपनी आत्मा में प्रकट करना है। परमात्मिक गुणों की अभिव्यक्ति सम्यक् चारित्र के द्वारा ही संभव है अतएव भगवद् भक्त पुरुष सम्यक्चारित्र की अाराधना अवश्य करेगा। .. ... सम्यक् चारित्र के दो रूप है-संयम और तप । संयम नवीन कमों के प्रास्त्रव-बंध को रोकता है और तप पूर्व संचित कर्मों को क्षय करता है । मुक्ति प्राप्त करने के लिए इन दोनों की अनिवार्य आवश्यकता है। किसी सरोवर को सुखाने के लिए दो काम करने पड़ते हैं-नये आने वाले पानी को रोकना और पहले के संचित को उलीचना । इन उपायों से सरोवर रिक्त हो जाता है । इसी
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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