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१२८] कि उसने वास्तव में भक्ति नहीं की है। उसने भक्ति के रहस्य को समझा ही नहीं है । कहा भी है
प्रभु तो नाम रसायण सेवे, पण जो पथ्य ,पलाय नहीं। तो भव-रोग कदीय न छटे,
प्रात्म शान्ति ते पाय नहीं । प्रभु का नाम अनमोल रसायन है । वस्तु-रसायन के सेवन का प्रभाव सीमित समय तक ही रहता है. किन्तु नाम रसायन तो जन्म-जन्मान्तरों तक उपयोगी होता है । उसके सेवन से आत्मिक शक्तियाँ बलवती हो जाती हैं और अनादि काल की जन्म-मरण की विविध व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
रसायन के सेवन के साथ यदि पथ्य का सेवन न किया जाय तो कोई लाभ नहीं होता । रसायन का सेवन निष्फल हो जाएगा। यही नहीं, कदाचित् विपरीत प्रभाव भी उत्पन्न कर सकता है । नाम-रसायन के सेवन के विषय में भी यही नियम लागू होता है। नाम-रसायन के सेवन के लिए अहिंसा आदि सदाचरण पथ्य हैं । इनका पालन किये विना नाम-रटन वृथा है ।
सच्ची धर्मसाधना करने वाला मुमुक्षु धर्म के विरुद्ध आचरण की संभावना होते ही अपने ऊपर नियंत्रण लगा लेता है । गलती उससे हो सकती है, अनुचित शब्द का प्रयोग भी हो सकता है, किन्तु अपनी गलती प्रतीत होते ही वह उसका समुचित परिमार्जन कर लेता है और ऐसा करने में उसे तनिक भी हिचक नहीं होती। मुमुक्षु का जीवन अत्यन्त स्पृहणीय और अभिनन्दनीय होता है । दूसरों पर उसके जीवन की ऐसी गहरी छाप लग जाती है कि वह सर्वत्र सम्मान पाता है। जीवन को सफल बनाने की कुंजी उसके हाथ लग जाती है।
किन्तु यह तभी सम्भव है जब लोभवृत्ति पर अंकुश रक्खा जाय और कामना पर नियंत्रण किया जाय । इतना कर लेने पर अन्याय गलरण भी रुक जाते हैं, क्योंकि कामना ही मनुष्य घसीट
ले ती .