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[ ११५ श्रावक बनकर अपने जीवन को सफल कर सकता है । यहाँ कर्मादान का विचार करना है । कल 'कर्मादान' शब्द के अर्थ पर विचार किया जा चुका है। ये कर्मादान पन्द्रह हैं, यह भी कहा जा चुका है । इस वर्गीकरण में उन सभी कर्मों का समावेश कर लेना चाहिए जो महारंभ के जनक हैं और जिनसे घोर अशुभ कर्मों का बन्ध होता है। ये कर्मादान जानने के योग्य हैं जिससे प्रात्मा भारी न बने । कर्मादानों के विषय में आचार्य हरिभद्र, आचार्य अभयदेव और आचार्य हेमचन्द्र आदि ने कर्मादानों की व्याख्या की है और उनके भेदों पर अपने-अपने विचार प्रकट किये हैं । यहाँ संक्षेप में इन पर विचार करना है-.
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.. (१) इंगाल कम्मे (अंगार कर्म)-इंगाल का अर्थ है कोयला । कोयला बना कर बेचने का धंधा करने वाला अग्निकाय, वनस्पतिकाय और वायुकाय के जीवों का प्रचुर परिमाण में घात करता है। अन्य त्रस आदि प्राणियों के घात का भी कारण बनता है । इस कार्य से महान् हिंसा होती है । कोयला बनाने के लिए लकड़ी का ढेर कर-करके उसमें आग लगानी पड़ती है जैसे कुंभार मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए उनका ढेर करता है। प्रायः जीव-जन्तु जहां शीतलता पाते हैं वहां निवास करते हैं, लकड़ी के पास और उसके सहारे भी अनेकानेक जीव रहते हैं । ऐसी स्थिति में लकड़ी की ढेरी को जलाने से कितने जीवों की हत्या होती है, यह तो केवल भगवान् ही जानते हैं । अतएव कोयला बनाने का धंधा करने वाला महारंभ और त्रस जीवों की हिंसा का भी भागी बनता है। धंधे के रूप में इस कार्य को करने से बड़े परिमाण में करना पड़ता है । अतएव महारंभ का कारण होने से इंगालकम्म (अंगार का) श्रावक के करने योग्य नहीं है।
- कुछ प्राचार्यों ने अंगार कर्म का व्यापक अर्थ लिया है। वे अंगार - का अर्थ अग्नि मान कर इसकी व्याख्या करते हैं। अगर यह अर्थ लिया जाय तो लोहकार, स्वर्णकार, हलवाई और भड़भूजे का धंधा भी अंगार कर्म के अन्तर्गत आ जाएगा ! यह स्मरण रखना चाहिए कि व्याख्याकारों के विचारों पर देश, काल और वातावरण की छाया भी पड़ती है।