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________________ कर्मादान [२] जिसका समभाव, करुणाभाव एवं मैत्रीभाव इतना व्यापक बन जाता है कि वह अस और स्थावर-सभी प्राणियों के प्रति अहिंसक हो जाय, जिसके जीवन में संसार के किसी भी सजीव अथवा निर्जीव पदार्थ सम्बन्धी प्रासक्ति नहीं रह जाती, जो सब प्रकार के पापमय कृत्यों से अपने को पृथक् कर लेता है और जो महाव्रतों का परिपालन करने में समर्थ होता है, वही श्रमणधर्म के पालन का अधिकारी है। श्रमणधर्म का पालन करने के लिए गृहस्थी से नाता तोड़कर एकान्त साधना से नाता जोड़ना पड़ता है। किन्तु श्रावक का जीवन मात्र एक मर्यादा के साथ, आचार से परिपूर्ण होता है। वह अपनी परिस्थिति और सामर्थ्य के अनुसार देशविरति का आचरण करता है। श्रावक के व्रतमय जीवनादर्श का सम्यक् प्रकार से निरूपण हमें उपासकदशांग सूत्र में मिलता है। उसमें भगवान् महावीर के समय के दस श्रावकों का विवरण है, जिससे श्रावकधर्म की एक स्पष्ट रूपरेखा हमारे समक्ष खिंच आती है। उपासकदशांग में पहला चरित मानन्द श्रावक का है। आनन्द के माध्यम से उसमें श्रावक के बारह व्रतों पर प्रकाश डाला गया है। पहले व्रतों का निरूपण और फिर उनके अतिचारों का प्रतिपादन यह क्रम उसमें रक्खा गया है । अानन्द ने विभिन्न व्रतों में क्या-क्या मर्यादाएं रक्खीं, यह भी विशद रूप से वर्णन मिलता है। आनन्द सम्बन्धी उल्लिखित वर्णन केवल आनन्द के लिए ही नहीं, देशविरतिं का पालन करने वाले प्रत्येक साधक के लिए है। उस वर्णन के प्रकाश में श्रावक अपने वतमयं जीवन का निर्माण कर सकता है और प्रादर्श
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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