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. [११३ कम हैं वहां के लोग प्रायः निर्भय रहते हैं । परन्तु मुनि को वास्तविकता का पता नहीं था। वह तो किन्हीं अन्य विचारों में ही चक्कर लगाने लगे थे।
रूपाकोशा की भावना मुनि को सत्पथ पर लाने की ही थी। वह उन्हें असंयम और अधः पतन की अोर नहीं लेजाना चाहती थी। मुनि के विलुप्त विवेक को जागृत करना उसका लक्ष्य था । उनका मानसिक बल उभर
आए और वे जिन अवांछनीय वृत्तियों के वशीभूत हो रहे हैं, उनसे सावधान हो जाएं, यही उसका काम्य था । इसी उद्देश्य से उसने रत्नजटित कंबल का .. नाटक रचा था। वह मुनि को स्खलना से बचाने का प्रयास कर रही है।
इसी प्रकार हमें भी समाज की स्खलनाओं को ध्यान में रखना है और हृदय में घुसे हुए मलीन भावों को जीतना है. । ऐसा करने से हमारा इह लोक-परलोक दोनों में कल्याण होगा।