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११० ] फिर भी वह जीता जा सकता है, मगर 'राग का वेग अतीव प्रवल होता है। उसे जीत लेना अत्यन्त कठिन है । आदि वासी कहलाने वाले लोग आज भी खुले जंगलों में पड़े मिल जाते हैं, जहाँ शेर जैसे हिंस्र जानवरों का आवागमन होता रहता है । वे निर्भय रह कर जंगल में निवास करते हैं। भय को जीतना उनकी प्रकृति के अन्तर्गत है। किन्तु राग को जीतना इतना सरल नहीं है । इसके लिए ज्ञान की आवश्यकता है। ज्ञान भी बाह्य एवं शब्दस्पर्शी मात्र नहीं मगर आत्मस्पर्शी होना चाहिए ।
सिंह गुफा वासी मुनि ने राग की दुर्जेयता को नहीं समझा उसने भय की वृत्ति पर विजय पाई थी और सोचा था कि भय को जीतना ही कठिन है । जिसने भय को जीत लिया इसके लिए रागवृत्ति को जीतना चुटकियों का खेल है। परन्तु वह राग की आग में से गुजरा नहीं था। शूर वीर पुरुष पैने प्रहारों को जीत लेता है परन्तु रमणी के मृदुल प्रहारों के सामने उसे भी हार जाना पड़ता है। उन प्रहारों को जीतने के लिए फौलाद का कलेजा चाहिए । इसी कारण कहा गया है कि महा पुरुषों का चित्त वज्र से भी अधिक कठोर और फूल से भी अधिक कोमल होता है । दूसरे को दुःख में देख कर उनका हृदय अनायास ही मुरझा जाता है परन्तु अपने प्रति वे वज्र के समान होते हैं । कठिन से कठिन उपासर्ग भी उनके दिल को हिला नहीं सकते।
जोश की स्थिति में सिंह गुफा वासी मुनि पाटलीपुत्र में रूपाकोशा के घर पहुंचे। उन्होंने उसके घर में निवास करके चार मास (चातुर्मास्य) व्यतीत करने की अनुमति मांगी । वेश्या उनके आत्मबल की परीक्षा करना चाहती थी। अतएव उसने विनम्र एवमधुर स्वर में कहा मेरा बड़ा सौभाग्य है कि आपका मेरे . द्वार पर पदार्पण हुआ । समाज में मेरी जैसी महिलाएं गर्दा की दृष्टि से देखी जाती हैं किन्तु पाप लोकोत्तर दृष्टि से सम्पन्न हैं । आपके लिए प्राणीमात्र समान हैं । इसी कारण इतने बड़े नगर को छोड़ कर यहाँ पधारे हैं । किन्तु आप पहले भिक्षा ग्रहण कर लीजिए, बाद में धर्म वृद्धि की बात कीजिएगा। . ,
अर्थो अर्थलाभ का पात्र होता है, और कामी काम लाभ का पात्र होता