________________
१११ है । राजिया कवि ने कहा है-- .... कहणी जाय निकाम, आछोड़ी प्राणी उकत ।
दामां लोभी दाम, रजें न बातां 'राजिया' ॥ वेश्या बोली धर्म की बात करने से पहले पेट पूर्ति कर लीजिए।
गुरु लोभी चेला लालची, दोनों खेलें दाव ।
दोनों डूबा बापड़ा बैठ पत्थर की नांव ॥ . . और भी कहा है. बिल्ली गुरु बगला किया, दशा उजली देख ।
.. कहो कालू कैसे तिरै. दोनों की गति एक ॥ ... रूपाकोशा कहती है- आपका प्रयोजन है मेरे रंग महल में रहने के लिए एक कमरे की अनुमति प्राप्त करना, किन्तु एक बात मेरी भी मान लीजिए। .. राग की स्थिति में मनुष्य का विवेक सुषुप्त हो जाता है । जिस पर राग भाव उत्पन्न होता है, उसके अगुवरण उसे दृष्टिगोचर नहीं होते। गुणवान् के
गुणों का आकलन करना भी उस समय कठिन हो जाता है। . रूपाकोशा ने मुनि से भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की। मुनि ने
आनाकानी नहीं की और भिक्षा अंगीकार करली । यह भिक्षा मुनि की कसौटी __ करने के लिए दी गई थी। वे कितने गहरे पानी में हैं, यह जानने के लिए ही
दी गई थी, अतएव उसमें गरिष्ठ मादक और उत्तेजक खाद्य थे । मुनि ने . भिक्षा ग्रहण करके उसका उपयोग कर लिया। . .
मुनि के मन पर आहार का असर हुआ । चिरकाल से पोषित विराग निर्बल पड़ने लगा और अनादिकालीन राग का भाव उभरने लगा। जैसे संध्या के समय सूर्य अस्त होने लगता है और अन्धकार अपने पैर फैलाने लगता हैं, उसी प्रकार मुनि के मन रूपी आकाश से विवेक का सूर्य अस्त होने लंगा और मोह का अन्धकार अपना प्रसार करने लगा। उलकी यह मनोदशा देखकर विचक्षण रूपाकोशा ने कहा-आप रंग-महल में रहने की अनुमति चाहते