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TES जा सकता । इन बातों का उल्लेख किया जा रहा है कि धर्म का प्राधार नैतिकता नहीं वहां धर्म ठहर नहीं सकता । अतएव धर्म की प्रतिष्ठा के लिए जीवन में मैतिकता पाना आवश्यक है । आज नैतिकता के ह्रास के कारण लोगों के हृदय में से धर्म का भाव भी नष्ट होता जा रहा है। ..........
.. आज भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार न करके मनुष्य उच्छखल प्रवृत्ति का परिचय दे रहा है, किन्तु याद रखना चाहिए कि आहार बिगड़ने से विचार । बिगड़ता है और विचार बिगड़ने से प्राचार में विकृति पाती है। जब 'प्राचार . विकृत होता हैं तो जीवन भी विकृत बन जाता है। शास्त्र में कहा है-...
_ 'पाहार सिच्छे मियमेसरिणज्ज।' ...... - एक शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया-काम क्रोध मोह आदि विकारों पर कसे विजय प्राप्त की जाय ? तो गुरू ने उत्तर दिया--तेरा आहार आवश्यक कता के अनुसार और निर्दोष होना चाहिए। इससे मन में सात्त्विकता पाएगी; मन शुद्ध होगा। साधना के मार्ग में सजग रई कर चलने वाला ही अपना । जीवन ऊंचा उठा सकता है।
___ बहुत-से विवेकहीन लोग स्वाद के लोभ में पड़ कर आवश्कता से अधिक खा जाते हैं । भोजन स्वादिष्ट हुआ तो ढूंस-ठूस कर उसे पेट में भरते हैं। यदि अन्न पराया हुआ तव तो पूछना ही क्या है । पेटू लोगों ने कहा है
परान्तं प्राप्य दुर्बुद्ध, शरीरे मा दयां कुरू। .
परान्नं दुर्लभ लौके. शरीरं हि पुनः पुनः ॥ .. अर्थात्-अरे मूर्ख ? पराया अन्न मिले तो शरीर पर क्या मत करो .. शरीर मिल सकता है, किन्तु पराया अन्न दुर्लभ है । जहां लोगों की ऐसी दृष्टि
हो वहां क्या कहा जाय, वें जीवन के लिए भोजन समझने के बजाय भोजन के .. लिए जीवन समझते है । किन्तु भगवान् महावीर ने साधक को सूचना दी है । कि भोजन उतना ही करना चाहिए जिससे संयम की साधना में वाधा न पहुंचे आवश्यकता से अधिक भोजन किया जाएगा तो शरीर में गड़बड़ होगी, मन में