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१००] अशान्ति होगी, प्रमाद आएगा और साधना यथावत् न हो सकेगी। स्वाध्याय और ध्यान के लिए चित्त की जिस एकाग्रता की आवश्यकता है, वह नहीं रह सकेगी।
आनन्द ने जब व्रत ग्रहण किए तो भोजन सम्बन्धी अनेक मर्यादाएँ भी स्वीकार की। उसका ग्राहार शुद्ध है उत्तके पास ज्ञान का बल है, अतएवः प्रगति के द्वार अवरुद्ध नहीं खुले हुए हैं। जहां अात्मज्ञान का लोकोत्तर प्रकाश देदीप्यमान रहता है वहीं साधना सही मार्ग चलती और फलती है।
स्थूलभद्र मुनि अपने आत्मज्ञान के बल पर वह कार्य कर सके जिसे देव भी नहीं कर सकते। सिंह गुफावासी मुनि ने गुरू संभूति विजय से निवेदनकिया कि मुझे भी वेश्या के घर में वर्षाकाल व्यतीत करने की अनुमति दी जाय । उन्हें ज्ञान नहीं है कि मुनि स्थूलभद्र ने कैसा जीवन व्यतीत किया है और किस सीमा तक विराग अवस्था प्राप्त करके काम को पराजित किया है आवेश में चलने वाला व्यक्ति प्रायः असफल होता है, चाहे लौकिक साहस का काम हो, चाहे लोकोत्तर साहस का । सयपूर्ण स्थानों में विजय पाने का लौकिक कार्य हो या कामक्रोध आदि विकारों पर दिजय पाने का प्राध्यात्मिक कार्य हो, जोश वाला व्यक्ति सफलता नहीं पाता । उस मुनि को इतना भी पता नहीं कि .. स्थूलभद्र ने रूपकोशा के जीवन में ही महान् परिवर्तन कर दिया है।
...जब उक्त मुनि ने अनुमति मांगी तो गुरुजी कुछ देर तक मौन ही रहे। वे समझ गए कि इसके मन में भावावेश खेल रहा है। यह स्थूलभद्र की वराबरी करने की ही भावना से कठोर साधना करना चाहता है। मगर स्थूलभद्र की योग्यता और वैराग्य वृत्ति की ऊँचाई का इसको ठीक-ठीक परिज्ञान नहीं है। .
स्थूलभद्र का अभिनन्दन और अभिवादन सकल संघ का अभिनन्दन और अभिवादन है, ऐसी उदार भावना यदि उन तीनों मुनियो में होती तो वे ईर्ष्या के वशीभूत होकर ऐसा करने पर उतारू न होते । उन्हें यही पता नहीं कि जब साथी मुनि के गुणों का उत्कर्ष एवं सन्मान हो उनका मन सहन नहीं