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६२] सिंह गुफावासी मुनि के लिए रूपाकोशा के घर जाकर साधना करने की अनुमति मांगी।
गुरुजी बड़े असमंजस में पड़ गए। वे इन मुनियों के मनोभाव को भलीभाँति जानते थे । उन्हें पता था कि साधना की इस मांग के पीछे सहज भाव नहीं हैं, अहंकार को तुष्ट करने की ही प्रधान भावना है। स्थूलभद्र के प्रति ईर्ष्याभाव ने इन्हें इसके लिए उद्यत किया है। स्थूलभद्र जिस वासना पर विजय प्राप्त करके यशस्वी बने, उसे जीतना प्रत्येक के लिए सरल नहीं है । ऐसी पात्रता प्राप्त करने के लिए विशिष्ट भूमिका होनी चाहिए । इन तीनों में अभी तक उस भूमिका का निर्माण नहीं हो सका है । सिंह गुफावासी अनगार सात्विक भाव वाला है अवश्य, पर इस समय ईर्ष्या के कारण उसके सात्विक भाव में कुछ मलीनता ही आई है। उत्कर्ष के बदले इसकी विशुद्धि का अपकर्ष हुआ है । नीतिकार कहते हैं।
घृत कुम्भसमानारी, तप्तांगारसमः पुमान् । तस्मात् घृतञ्च, कुम्भञ्च नैकत्र स्थापयेद् बुधः ।
नारी घी का घडा है और पुरुष तपा हुआ अंगार । इन दोनों को एक जगह रखने वाला पुरुष बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता।
___ गुरु संभूतिविजय बड़ी दुविधा में थे। उनका मन अनुमति देने को तेयार न था । वे उस मुनि के संयम को संकट में नहीं डालना चाहते थे। भला कौन ऐसा गुरु होगा जो अपने शिष्य को असंयम के गहरे गर्त में गिराने की इच्छा करे ? गुरु और शिष्य का सम्बन्ध संयम की वृद्धि के लिए होता है, अन्यथा- पिता, भ्राता आदि से नाता तोड़ कर गुरु के नाम पर नया नाता जोड़ने की आवश्यकता ही क्या थी ? एक साधना का अभिलाषी नौसिखिया किसी अनुभवी की शरण में जाता है और निवेदन करता है-भगवन् ! मैं साधना के इस अपरिचित और गहन पथ पर चलना चाहता हूँ ! आप इस पथ के अनुभवी हैं । इस मार्ग में आने वाली विघ्न बाधाओं से परिचित हैं ।