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आध्यात्मिक आलोक पिता की मनस्तुष्टि के लिए गागय ने आजीवन ब्रह्मचारी बने रहने का व्रत ले लिया । जो लोग कहा करते हैं कि बिना पुत्र के मुक्ति नहीं मिलती, भीष्म ने उनकी गलत परम्परा को नया मोड़ दिया और बतलाया कि सुकृत्य से मानव मुक्ति पाता है, पुत्र से नहीं । महाभारत के हजारों पात्रों में भीष्म का जो ओज व तेज है वह किसी दूसरे को नहीं मिला । अतः भरसक हर युवक युवती को भीष्म सी प्रतीज्ञा पालन कर आदर्श उपस्थित करना चाहिए ।
महामुनि स्थूलभद्र की जीवन गाथा भी हमारे सामने है । वे स्वयं तो निष्कलंक चरित्र रहे ही, पर साथ ही एक कदाचारिणी वेश्या के जीवन को भी सुधार दिया । जिस प्रकार काम विजय कर स्थूलभद्र ने अपने जीवन में सिद्धि प्राप्त की, वैसे हर मानव यदि ब्रह्मचर्य का पालन करे तो उसका उभयलोक सुखद होगा ।