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________________ 336 आध्यात्मिक आलोक ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे ।' यह उक्ति चरितार्थ होगी । जो स्वयं त्याग करता है और शिक्षा देता है, उसका प्रभाव अड़ौसी-पड़ौसी पर क्यों नहीं पड़ेगा? उनका परिमार्जन क्यों नहीं होगा ? त्याग भावना विद्यमान होने से उसकी वाणी प्रभावोत्पादक होगी । आचार के अनुरूप विचार जब भाषा के माध्यम से व्यक्त किये जाते हैं तो अवश्य दूसरों पर स्थायी प्रभाव अंकित करते हैं । श्रोताओं के हृदय में परिवर्तन ला देते हैं । हां, कोई एकदम ही अपात्र और कुसंस्कारी श्रोता हो तो बात दूसरी है । पश्चावर्ती आचार्यों की दृष्टि से ईंटें पकाने, खपरा पकाने का तथा लोहार आदि का धंधा अंगार कर्म में समाविष्ट हो जाता है पर कोयला बना-बना कर बेचना अत्यन्त खर कर्म है, अतएव श्रावक को इसका परित्याग करना ही चाहिए। (२) वणकम्मे ( वनकर्म )-वृक्षों को काट कर बेचने का काम वनकर्म कहलाता है । वनकर्म करके मनुष्य घोर पाप उपार्जन करता है । वन के वृक्षों को काटने का ठेका लेने वाला किसी अन्य बात को ध्यान में नहीं रखता । उसके सामने एक ही लक्ष्य रहता है कि अधिक से अधिक वृक्षों को काट कर कैसे अधिक से अधिक धन कमाया जाय । एक समय था जब फलदार वृक्षों को काटना कानूनी अपराध समझा जाता था । आज भी राष्ट्रनायक नेहरू जी निर्देश करते हैं कि वृक्षों का काटना अत्यन्त हानिकारक है । वे कहते हैं-'जब तक दस वृक्ष नये न लगा दिये जाएं तब तक एक वृक्ष न काटा जाए ।' मगर बड़े-बड़े वन साफ किये जा रहे हैं जिससे ईंधन तथा गृह-निर्माण के लिए भी लकड़ी मिलना मुश्किल हो जाता है। __ भारतीय संस्कृति में वट, पीपल, नीम आदि वृक्षों के काटने में भय बतलाया गया है । संभवतः इस विधान के पीछे इन विशालकाय वृक्षों की रक्षा करने का ही ध्येय रहा हो । साधारण जनता ऐसे वृक्षों को काटना अनिष्टकारक समझती आई है, परन्तु अब यह धारणा परिवर्तित होती जा रही है। जब वृक्षों के सम्बन्ध में भारतीय जनता का यह दृष्टिकोण था तो पशुओं की बलि की बात कहां तक. संगत हो सकती है? वनस्पति की गणना स्थावर जीवों में की गई है, किन्तु अन्य स्थावर जीवों की अपेक्षा वनस्पति में चेतना का अंश किचित अधिक विकसित प्रतीत होता है । __ अतएव उसकी रक्षा की ओर इतर लोगों का भी ध्यान आकृष्ट हुआ हो, यह
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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