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________________ आध्यात्मिक आलोक 301 होता है । कष्ट की अपेक्षा प्रलोभन के सामने गिर जाने की अधिक सम्भावना रहती है। सम्भूति विजय के चार शिष्य उग्र साधना के लिए निकले थे । उनमें से तीन के सामने प्रतिकूल परीषह थे और चौथे स्थूलभद्र के सामने अनुकूल परीषह । प्रतिकूल परीषहों को जीतने वाले धन्य हुए तो अनुकूल परीषह को जीतने वाला अतिधन्य कहलाया । स्थूलभद्र के कार्य को "दुष्करम् अति दुष्करम कह कर सराहा गया। सारी मुनि-मण्डली ने भी उनकी सराहना की। तीनों मुनियों ने स्थूलभद्र की प्रशंसा सुनी। ___जौहरी नगीनों का मूल्यांकन उनकी चमक-दमक आदि की दृष्टि से करता है। विभिन्न नगीनों की कीमत में अन्तर होता है । गुरु सम्भूति विजय जौहरी के समान थे और साधक मुनि नगीने के समान । यदि गुरु साधनाओं का सही मूल्यांकन न करे तो शिष्यों पर ठीक प्रभाव न पड़े। जिस गुणी में जिस कोटि का गुण हो, उसकी उसी रूप में प्रशंसा करना दर्शनाचार का पोषण करना है। गुरु के लिए सभी शिष्य समान थे । उनके मन में किसी के प्रति पक्षपात नहीं था । फिर भी स्थूलभद्र की उन्होंने विशेष प्रशंसा की । इसका कारण उनकी साधना की उत्कृष्टता ही समझना चाहिए । निद्रा, भूख, प्यास, आदि को जीतना उतना कठिन नहीं है जितना काम, क्रोध आदि पर विजय प्राप्त करना कठिन है। ___ अध्यापक अपने शिष्यों में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न कर देता है जिससे अध्ययन में विशेष प्रगति हो, अध्यात्म-मार्ग में भी इसी प्रकार प्रतियोगिता की सुयोजना की जाती है। तीनों मुनियों को स्थूलभद्र की विशिष्ट प्रशंसा सुनकर विचार हुआ हम लोगों ने प्राणों का ममत्व त्याग कर जीवन को संकट में डाल कर साधना की और स्थूलभद्र मुनि रूपकोषा के विलास भवन में मजे से रहे, फिर उनकी साधना को सर्वाधिक महत्व क्यों प्रदान किया गया? वहां जाकर तो कोई भी चार महीने व्यतीत कर सकता था । कहा है - जप तप करणी सोहिली रण संग्राम । प्रकृति पाछी मोड़नी, 'याको मुश्किल काम ।। ऐसा सोचने वाले मुनि भी सामान्य नहीं थे । वे तपस्वी होने के साथ चतुर भी थे । अतएव उन्होंने अपने भावों को शीघ्र प्रकट नहीं किया । जिसमें चतुराई कम होती है वह शीघ्र ही अपने मनोभावों को प्रकट कर देता है, उगल देता है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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