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________________ 269 आध्यात्मिक आलोक व्रती का जीवन उज्ज्वल होता है । उसमें एक प्रकार की दृढ़ता आ जाती है जिससे अपावन विचार उस पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते । अतएव किसी पाप या कुकृत्य को न करना ही पर्याप्त नहीं है वरन् न करने का व्रत ले लेना भी आवश्यक है । पूर्व समय के लोगों की तेजस्विता का कारण ब्रह्मचर्य की सुरक्षा ही है । पूर्व समय में वनराज चावड़ा की बड़ी ख्याति थी । उसके पिता बड़े पराक्रमी थे । वनराज चावड़ा के पिता ने, जब वनराज शैशव काल में था, उसकी माता के मुख पर हाथ फेर दिया। माता ने विचार किया-बच्चे ने इस घटना को देख लिया है और उसकी लाज लुट गई है। इससे उसके हृदय को इतना गहरा आघात लगा कि उसने प्राणों का परित्याग कर दिया । आपके विचार में यह घटना साधारण-सी हो सकती है और कई लोग वनराज की माता के प्राणोत्सर्ग की कोरी भावुकता कह सकते हैं, मगर उसकी पृष्ठभूमि में तो उदात्त संस्कार मौजूद हैं । उस पर विचार करने की मैं प्रेरणा देना चाहता हूँ। उस महिला को अपनी लज्जा एवं मर्यादा की रक्षा करने का कितना ध्यान था। एक कवि ने भारतीयों की वर्तमान दशा का चित्रण करते हुए लिखा है हम देखते रहते नजर के सामने ललना-परा । क्योकि नहीं हममें रहा, वह वीर्य बल अनुपम अभी । हम बन गये निर्वीर्य, कायर भीरु क्षयरोगी सभी । आज तो अधिकारियों को आवेदन-पत्र देने की निर्भीकता भी आप में नहीं रही । ऐसे भीरु भला देश, धर्म और दीन-हीन सती की क्या रक्षा कर सकेंगे । सदाचार की रक्षा करने के लिए भारत के प्राचीन वीर पुरुषों ने कुछ भी कसर नहीं छोड़ रखी थी। उसके लिए उन्होंने सर्वस्व निछावर कर दिया, प्राणों तक की आहुति देने में संकोच नहीं किया। भारत माता के बड़े ज्ञानी, दानी मानी और वीर पुत्र हुए हैं । नारियों ने भी ऐसे वीरोचित कार्य किए हैं जो पुरुषों के द्वारा भी होने संभव न थे । हमारे पूर्वज ज्ञान और विवेक की मशाल लेकर चलते थे, इसी कारण ऐसे नर-नारियों का जन्म हुआ। बादशाही सल्तनत के समय आततायी शासक थे, फिर भी उस समय ऐसे वीर पुरुष हुए हैं जो उन्हें राह पर ले आते थे । अकबर ने देश के • लोगों की धर्मभावना का आदर किया । वह धर्मान्ध नहीं, धर्मसहिष्णु था । कहते हैं वह सभी धर्म के नेताओं से सम्पर्क रखता था । जब व्यक्ति प्रधान राजतन्त्र में भी ऐसी स्थिति थी तब आज तो प्रजातन्त्र है । प्रजा के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि भारत का शासन चला रहे हैं । फिर भी यदि
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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