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________________ 268 आध्यात्मिक आलोक अशिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता और नैतिकता पूर्ण जीवन व्यतीत करने का आग्रह होता है उस घर का वातावरण सात्विक रहता है और उस घर के बालक सुसंस्कारी बनते हैं । अतएव माता-पिता आदि बुजुर्गों का यह उत्तरदायित्व है कि बालकों के जीवन को उच्च, पवित्र और सात्विक बनाने के लिए इतना अवश्य करें और साथ ही यह सावधानी भी रखें कि बालक कुसंगति के चेप से बचा रहे। (४) परविवाहकरण-जैसे ब्रह्मचर्य का विघात करना पाप है उसी प्रकार दूसरे के ब्रह्मचर्य पालन में बाधक बनना और मैथुन के पाप में सहायक बनना भी पाप है । अपने आश्रित बालक-बालिकाओं का विवाह करके उन्हें कुमार्ग से बचाना और सीमित ब्रह्मचर्य की ओर जोड़ना तो गृहस्थ की जिम्मेवारी है, मगर धनोपार्जन आदि के उद्देश्य से विवाह सम्बन्ध करवाना श्रावक धर्म की मर्यादा से बाहर है । अतएव यह भी ब्रह्मचर्य-अणुव्रत का अतिचार माना गया है। (५) कामभोग की तीव्र अभिलाषा-कामभोग की तीन अभिलाषा चित्त में बनी रहती है तो इससे अध्यवसायों में मलिनता पैदा हो जाती है । अतएव प्रत्येक श्रावक का यह कर्तव्य है कि वह काम-वासना की वृद्धि न होने दे, उसमें तीव्रता न आने दे । काम-वासना की उत्तेजना के यों तो अनेक कारण हो सकते हैं और बुद्धिमान व्यक्ति को उन सबसे बचना चाहिए, परन्तु दो कारण उनमें प्रधान माने जा सकते हैं । दुराचारी लोगों की कुसंगति और खानपान सम्बन्धी असंयम । व्रती पुरुष भी कुसंगति में पड़ कर गिर जाता है और अपने व्रत से भ्रष्ट हो जाता है । इसी प्रकार जो लोग आहार के सम्बन्ध में असंयमी होते हैं, उत्तेजक भोजन करते हैं, उनके चित्त में भी काम-भोग की अभिलाषा तीव्र रहती है। वास्तव में आहार-विहार के साथ ब्रह्मचर्य का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतएव ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले को इस विषय में सदा जागरुक रहना चाहिए । मांस, मदिरा, अंडा, आदि का उपयोग करना ब्रह्मचर्य को नष्ट करने का कारण है । कामोत्तेजक दवा और तेज मसालों के सेवन से भी उत्तेजना पैदा होती है । तीव्र काम-वासना होने से व्रत खण्डित हो जाता है और आत्मा की शक्तियां दब जाती हैं, अतएव पवित्र और उच्च विचारों में रमण करके गन्दे विचारों को रोकना चाहिए। ब्रह्मचर्य को व्रत के रूप में अंगीकार करने से भी विचारों की पवित्रता में सहायता मिलती है। मनुष्य के मन की निर्बलता जब उसे नीचे गिराने लगती है तब व्रत की शक्ति ही उसे बचाने में समर्थ होती है । व्रत अंगीकार नहीं करने वाला किसी भी समय गिर सकता है । उसका जीवन बिना पाल की तलाई जैसा है किन्तु
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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