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________________ [२६ ] जैन संस्कृति का पावन पर्व : पर्युषण पर्युषण त्याग, तप और साधना का आध्यात्मिक पर्व है । यह पर्व मानव-मन को सांसारिक प्रपंचों से अलग होने तथा उज्ज्वल भावों की ओर बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, साधना के प्रमुख चार साधन हैं । अनुकूल शरीर-द्रव्य और भूमि जैसे क्षेत्र को पाकर सभी व्यक्ति साधना के मार्ग में बढ़ सकते हैं। खासकर साधक को यदि विशेष साधन मिले, तो वह जीवन-निर्माण में और भी द्रुतगति से प्रगति कर सकता है । पर्वाधिराज एक ऐसा ही विशेष साधन है, जो आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण कर सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त-व्यक्ति को साधना के पथपर प्रोत्साहित करता तथा उसमें दृढ़ता, साहस, लगन और बल का अधिकाधिक संचार करता है। पर्व के द्वारा सामूहिक साधना का पथ प्रशस्त होता है एवं इससे समुदाय को साधना करने की प्रेरणा मिलती है, जिससे राष्ट्रीय-जीवन का संतुलन बना रहता है। मनुष्य यदि अपनी वृत्ति, विवेक पूर्ण नहीं रक्खे तो वह दूसरों के लिए घातक भी बन सकता है । असंयत मानवता, पशुता और दानवता से भी बढ़कर बर्बर मानी जाती तथा 'स्व-पर' के लिए कषाय का कारण हो जाती है । अतएव वाणी, व्यवहार और क्रियाकलाप सभी को संयत रखना हर एक मनुष्य का परम कर्तव्य है । यह पुनीत पर्व जन-जन के लिए कल्याणकारी बने, यह लक्ष्य हमारी दृष्टि से ओझल नहीं होना चाहिए। पर्यषण शब्द के पीछे गंभीर रहस्य और मर्म की बातें छिपी हुई हैं। अपने अन्य कार्य बिना हेतु के भी हो सकते हैं, किन्तु सच्छास्त्र की कोई भी बात अहेतुक नहीं होती । आज के माता-पिता अपने पुत्र का नाम राजेन्द्र और जिनेन्द्र आदि रख देते हैं किन्न ने रमे उस नाम के अनुरूप बनाने का प्रयास नहीं करते । ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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