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है या संकलित है ? इस पर मतभेद है, परन्तु इसमें कोई मतभेद नहीं कि जो सूत्र इसमें दिये हैं वे जैन दर्शन का संपूर्ण सार प्रस्तुत करते हैं। वे हर महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर देते हैं। और, किसी ने कहा कि भगवान महावीर ने छत्तीस प्रश्नों के उत्तर बिना पूछे छत्तीस अध्यायों में दिये हैं। इन दोनों दृष्टिकोण से "उत्तर" का अध्ययन करने से उत्तराध्ययन कहा जाता है ।
यह शास्त्र "विनय" के अध्याय से प्रारंभ होता है। विनय का साधारण अर्थ नम्रता या प्राजापालन से लिया जाता है। परन्तु विनय का अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक और गहरा है। विनय व्यक्ति का शील और आचार है। यह धर्म और जीवन का मूल है। जहाँ अहं है वहां विनय नहीं। जहां विनय नहीं वहां धर्म नहीं। जहाँ धर्म नहीं वहाँ जीवन नहीं। इस तरह विनय धर्म और जीवन का मूल है, परन्तु इसके ऊपरी अध्ययन से लगता है कि केवल गुरुमाज्ञा को मानने में ही विनय है और यह गुरु-पद्धति का पोषक है। परन्तु, गहराई से देखें तो गुरु-विनय के साथ वाणी और शरीर का संयम व अपनी कामनाओं को वश में करना यह सब विनय के भाग हैं। अतः ऊपरी रूप से गुरु आज्ञा का मानना ही विनय न होकर पूरे शील और सयम के आचरण को विनय मानना चाहिये।
इसी प्रकार परिषह. श्रद्धा, प्रमाद, सकाम मरण, आदि विषयों पर मार्मिक विवेचन है और इनके अनुसरण से व्यक्ति आत्म-कल्याण के मार्ग पर आसानी से बढ़ सकता है। इस शास्त्र में संवाद की शैली से कई गूढ विषयों को प्रतिपादित किया गया है। राजा नमि और इन्द्र, इक्षुकार नगर में दो बालक और उनके पुरोहित ब्राह्मण मातापिता, चित्त और संभूत भाईयों में संवाद वैराग्य और संसार की
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