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प्राक्कथन
उत्तराध्ययन सूत्र जन भागमों में प्रथम मूल सूत्र है और यदि इसे जैन धर्म की “गीता' कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जैन शास्त्रों व दर्शन के प्रति जिज्ञासु व्यक्ति यह मांग करते हैं कि किसी एक पुस्तक का नाम बतायें जिससे जैन दर्शन की संपूर्ण जानकारी मिल सके तो सहज ही उत्तराध्ययन सूत्र ध्यान में आता है जो जैन दर्शन का सार प्रस्तुत करता है। वैसे तो दशवकालिक सूत्र और उमास्वाति रचित तत्त्वार्यसूत्र भी जैन दर्शन का परिचय देते हैं लेकिन उत्तराध्ययन सूत्र की तुलना नहीं कर सकते। वैसे भी व्यवहार, वाचन व उद्धरण को दृष्टि से उत्तराध्ययन का जितना प्रचलन है उतना किसी आगम का नहीं है। कुछ श्वेताम्बर परम्पराओं में दीपावली के दूसरे दिन उत्तराध्ययन सूत्र का संपूर्ण वाचन मुनिगण खड़े होकर करते हैं। इसके पीछे विश्वास एवं मान्यता है कि इस सूत्र में जो भी गाथाएं हैं, वे सब भगवान महावीर के अंतिम उपदेश हैं जो उन्होंने निर्वाण से पूर्व दिये थे। अतः इनका वाचन निर्वाण के दूसरे दिन किया जाता है।
उत्तराध्ययन सूत्र का नाम उत्तराध्ययन क्यों रखा? इस पर भी कई टिप्पणियां हैं। यह मूल में भगवान महावीर द्वारा रचित चयनिका ]
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