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[पद्मिनी चरित्र चौपई
भमरा' हे सखि भमरा भमई अनन्त,
नारी हे सखि नारि हे सहु तिण पछे जी ॥ परिमल हे सखि परिमल महकै पूर,
वासें हे सखि बास हे भमरा चमकीया जी। माणस हे सखि माणस केही मात,
हीसे हे सखि हीसे हे देव तणा हिया जी।६। राणो हे सखि राणो हे अति रढाल,
घरणी हे सखि घरणी मनहरणी वरी जी। अननी हे सखि मननी हे पूगी आस,
सफली हे सखि सफली परतग्या करीजी १७) दिन दिन हे सखि दिन दिन नव नव भोग,
पूरे हे सखि पूरे हे सिंघल सुख सहु जी। रलीया हे सखि रलिया दिन ने रात,
रहता हे सखि रहतां हे दिवस बहू जी ।। अवसर हे सखि अवसर हे पामी राय
मागे हे सखि मागे घर नी सीखडी जी। वीनती हे सखि वीनती हे तुम्ह स्यु एह,
मा सुहे सखी मासु हे मति करयो अड़ी जी ॥६॥ १ रम्मा हे सखि रम्मा रति इंद्राणी, अपछर हे सखि अपछर पदमणि रइ पछै जी २ वसिकीयाजी ३ गात
'साहसियां लच्छी हुवइ, नहु कायर पुरुषाह काने कुण्डल रयणमइ, मसि फज्जल नयांह १