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[पद्मिनी चरित्र चौपई
वाचा साची आपस्यु रे, आपु अति सनेह । अर्द्ध राज भंडार नो रे, भग्नीपति हुइ जेह रे ।वा०||१८|| राजा मन आणंदियो रे, रामति जी एह । 'लव्धोदय' कहै सदा रे, पुण्य सहाय तेह रेवावा१६||
क्रीड़ा विजय
दोहा 'रतनसेन' राजा कहे, पूछो सिंघल भूप । कओल थकी चके नहि, कीजें खेल अनूप ॥ १॥ सेवक जाइ विनम्यो, हरख्यो सिंघल राय । वोलावी बहु मानसु, वइठण दीधौ नाय ।। २।। रामति रमवा रंग स्यु, बैठा वेऊं आय। जाण सूर अनें ससी, मिलीया एकण ठाय ॥३॥ पासे वेठी पदमणी, कोमल कंचन काय । राणो रूड़ी विधि रमे, तिम तिम आवें दाय॥४॥ ए छे कोई राजवी, रूपवंत रति राज ।
जो जी किम ही करी, तू तोठो महाराज ॥५॥ ढाल (५) दु ढणीया री मेवाडी देशी, मेवाडि देशे प्रसिद्धास्ति रमता हे सखि रमता रूडी रीत,
रसीयो हे सखि रसियो पदमणि मन वस्यो जी। जीतो हे सखि जीतो हे राणो जोध,
सिंघल हे सखी सिंघल हास्यो मन उलस्यो जी ।।१।।