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________________ । १० ] [पद्मिनी चरित्र चौपई ढाल (8)-सिहरा सिहर मधुपुरी रे, कुमरा नदकुमार रे एदेशी राग-कालहरो सिध साधक योगी भणी रे, जाय कीयो आदेश रे। वार वार वीनति करी रे, लागो पाय नरेश रे ॥१॥ वाल्हेसर सांमी, मानि न तु अंतस्यामी, मानि ने शिवगति गामी, वीनतड़ी मुझ मानो वा०॥ आकणी॥ मुझ मनि सिंघलद्वीप नी रे, पदमणि देखण चाह । तुझ परसादे सहु हस्ये रे, हिव मुझ सी परवाह रे वा० ॥२॥ विविध विनय वचने करी रे, सुप्रसन्न हुओ साम । आँखि उघाड़ी देखीयो रे, वोलायो ले नाम रे । वा०॥३॥ भूपति मन अचरिज थयो रे, किम जाण्यो मुमनाम । ए ज्ञानी आयस अछे रे, पूरवस्य मुझ हाम रे ।वा०४। जोगी जपे राणजी रे, तु आयो मुझ थान । कारिज थारो हुँ करुं रे, जो गुरु लागो कान रे । वाश ईम कही साही समरणी रे, हाथे वेऊ असवार रे। आयस अंवर ऊडीयो रे, लागी वार न लिगार रेवा०६ सिंहलद्वीप प्रवेश सिंघलद्वीपे मूकि ने रे, आयस हूअउ अलोप रे। राना रो मन रंजीयो रे, देख्यो नगर अनोप रे ।। वाण
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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