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[पद्मिनी चरित्र चौपई ढाल (8)-सिहरा सिहर मधुपुरी रे, कुमरा नदकुमार रे एदेशी
राग-कालहरो
सिध साधक योगी भणी रे, जाय कीयो आदेश रे। वार वार वीनति करी रे, लागो पाय नरेश रे ॥१॥ वाल्हेसर सांमी, मानि न तु अंतस्यामी, मानि ने शिवगति गामी, वीनतड़ी मुझ मानो वा०॥ आकणी॥ मुझ मनि सिंघलद्वीप नी रे, पदमणि देखण चाह । तुझ परसादे सहु हस्ये रे, हिव मुझ सी परवाह रे वा० ॥२॥ विविध विनय वचने करी रे, सुप्रसन्न हुओ साम । आँखि उघाड़ी देखीयो रे, वोलायो ले नाम रे । वा०॥३॥ भूपति मन अचरिज थयो रे, किम जाण्यो मुमनाम । ए ज्ञानी आयस अछे रे, पूरवस्य मुझ हाम रे ।वा०४। जोगी जपे राणजी रे, तु आयो मुझ थान । कारिज थारो हुँ करुं रे, जो गुरु लागो कान रे ।
वाश ईम कही साही समरणी रे, हाथे वेऊ असवार रे। आयस अंवर ऊडीयो रे, लागी वार न लिगार रेवा०६
सिंहलद्वीप प्रवेश
सिंघलद्वीपे मूकि ने रे, आयस हूअउ अलोप रे। राना रो मन रंजीयो रे, देख्यो नगर अनोप रे ।। वाण