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[ पद्मिनी चरित्र चौपई तिण बेला पंथी एक कि, भूख त्रिस भेदीयउ रे । भू० विण अमले गहिले देह कि, पंथ' अति देखियउ रे। पं018|| अटवी माहि माणस एक कि, जोता नवि जुड़यो रे। जो० तदि देख्यो राजा तेण कि, पगि आवी पड़यो रे । ५० ॥१०॥ कीधा सीतल उपचार कि, अमल पाणी दीयो रे । अ० भोजन सेवा वहु भाति कि, राय संतोपीयो रे । रा०॥११॥ पंथीक ने कोतिक वात कि, राय पूछे वली रे। रा० देख्यो ते पदमणी देश कि, किहा हि सांभली रे । कि० ॥१२॥ सुणि राजन सिंघलद्वीप कि, दक्षिण दिशि अछ रे । द० आडो वहै जलधि अथाह कि, पार जेहनो न छ रे । पा० ॥१३॥ विहा पदमणि नारि अनेक कि, रूपें अपछरी रे। रू० सुणि राजा देइ कान कि, सीख तिण सुं करी रे। सी० ॥ १४ ॥ मनिं आणिद्यो महाराय कि. दीप सिंघल भणी रे। दी० चालविया चपल तुरंग कि, पवन थी गति घणी रे। प० ॥१५॥ लाध्या गिर नगर निवाण कि, सूर अति साहसी रे । सू० दोन्यु आया दरिया तीर कि, मन मांहि अति खुशी रे म०॥१६॥ जगि पुण्य सहाइ जास कि, तास पूजें मन रली रे । ता० मुनि 'लब्धोदय' कहै एमकि, को न सके कली रे । को० ॥१७॥
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१ पंख २ खेदियर