________________
[३
पद्मिनी चरित्र चौपई ] इन्द्रपुरी जाणे अवतरी, कोडीधज लोके करि भरी। नगर वर्णनो नावे पार, देव रचई ए गढ सार ॥१०॥ चतुर सुणयो देइ नई चित्त, गुर मुख ढाल अरथ सुपवित्त । 'लब्धोदय' कहै पहली ढाल, आगइ सुणता अछे रसाल ||११||
[सर्व गाथा १८ ] राजा वर्णन
दोहा
सूर वीर अति साहसी, सब राई मइ सिरमौर । 'रतनसेन' राणो तिहां, जा सम भूप न और ॥ १ ॥ जाकइ तेज प्रताप थई, दुरजन भागे सब दूर। अंधकार कैसे रहइ, उदइ होइ जीहा सूर ।।३॥ अविचल आज्ञा अवनि परि,न्याय निपुण निरभीक । अरिगज भंजन केसरी, राखे खत्रीवट लीक ।। ३ ।। मानी मरदाना वली, दरबारइ दोय लाख । सुभट खड़ा सेवा करई, सुरपति वदइ ज्युं साख ॥४॥
ह्य गय रथ पायक हसम, करि न सके कोउ मान । रयण द्युस ठाढइ रहे, सनमुख सव राय राण ॥५॥
पटराज्ञी वर्णन पटराणी 'परभावती', रूपे रम्भ समान ।
देखत सुरनर किन्नरी, अइसी नारि न आन ।। ६॥ १ नीमीयो २ अरिजन गये ज दूर