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लिया । बादल ने कहा-माता | काकाजी की वीरता का कहाँ तक वर्णन करूं। उन्होंने तो शत्रुसेना का इतना सफाया किया कि मात्र सुलतान अकेला किसी प्रकार बच पाया। काकाजी का शरीर इस महायुद्ध में तिल तिल-सा छिद्रित हो गया और वे स्वर्गपुरी के मेहमान हो गये। उन्होंने गढ की लज्जा रखी और अपने वंशको उज्वल किया।
पति की वीरता का बखान सुनकर गोरा की स्त्री के रोमरोम में वीरत्व छा गया और वह पतिपरायणा सतवती सत मे अभिभूत होकर वादल से कहने लगी-बेटा | ठाकुर स्वर्ग में अकेले हैं और विलम्ब होने से अन्तर परता जा रहा है । अतः अव काकी को शीघ्र ही ठिकाने लगाओ। बादल ने काकी के सत्त की प्रशंसा की। वह सुसज्जित होकर अश्वारूढ़ हुई और राम-राम उच्चारण करते हुए (गोरा के शव के साथ ) अग्निप्रवेश कर गई।
बादल ने अपने बुद्धिबल, स्वामिभक्ति और शौर्य के बल पर राणा को छुडाया, दिल्लीपति को जीता और पद्मिनी की रक्षा की। उसका यश नवखण्ड मे फैला। इस तरह पद्मिनी के शील-प्रभाव और बादल के सानिध्य से रत्नसेन राणा निर्भय राज्य करने लगे। ___ इसके बाद कवि लब्धोदय पद्मिनी चरित्र को सुखान्त समाप्त करता है और प्रशस्ति मे अपनी गुरु परम्परा, वर्तमान आचार्य तथा राणा जगतसिंह की माता जबूवती के प्रधान