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________________ कवि की सातवीं रचना गुणावली चौपाई ज्ञानपंचमी के माहात्म्य पर निर्मित हुई है। स० १७४५ के मिती फाल्गुण सुदि १० को उदयपुर मे कटारिया मन्त्री भागचन्द जी की पत्नी भावलदे के लिए यह रची गई थी। फा०व० १३ को प्रारम्भ कर फा० सु० १० को अर्थात् केवल १२ दिनमें आपने यह काव्य रच डाला था। ___उपर्युक्त बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त कवि ने बहुतसी छोटी रचनाएँ अवश्य बनाई होंगी, पर हमे उनमें से केवल २ ही रचनाओं की जानकारी मिली है। प्रथम धुलेवा ऋषभदेव स्तवन १३ पद्यों का है और उसकी रचना सं० १७१० ज्येष्ठ बदि २ बुधवार को हुई है। दूसरा ऋषभदेव स्तवन १५ गाथा का है जो सं० १७३१ मि० ब० ८ वुधवार को रचा हुआ है। स्वर्गवास __सं० १७४५ के पश्चात् आपकी कोई रचना नहीं मिलती और उस समय आपकी आयु लगभग ६५-७० वर्ष की हो चुकी थी। अतः सं० १७५० के आस-पास आपका स्वर्गवास मेवाडउदयपुर के आसपास हुआ होगा। शिष्य परम्परा __ कवि लव्धोदय बड़े प्रभावशाली व्यक्ति थे। उनके धार्मिक उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक भावुक आत्माओ ने उनका शिष्यत्व स्वीकार किया था। कवि ने अपने 'रत्नचूड़ मणिचूड़ चौपाई' और 'मलयसुन्दरी चौ०' की प्रशस्ति में अपने शिष्यों की नामावली इस प्रकार दी है :
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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