________________
( ३२ ) के पुत्र हसराज और भागचन्द के आग्रह से मुनि श्री लब्धोदय गणि ने पूर्व रचित कथा को देखकर पद्मिनी चरित्र चौ०. की रचना स० १७०६ में प्रारम्भ कर ४६ ढाल व ८१६ गाथाओं मे स० १७०७ चैत्रीपूनम के दिन पूर्ण की। इससे पूर्ववर्ती रचना हेमरत्न की है उसमे 'गोराबादल कवित्त' का उपयोग हुआ है और लब्धोदय ने तो इन दोनों ही रचनाओं का उपयोग किया है। हेमरत्न की रचना मे गा०६३२ हैं और लब्धोदय की गाथा ८१६ है। अतः कवि ने कथा प्रसङ्ग विस्तृत किया है।
इसके पश्चात् कवि ने तीन चौपाइया और भी रची थी पर वे अबतक अनुपलब्ध है। उपलब्ध रचनाओं मे रत्नचूड मणिचूड चौपाई स० १७३६ की है जो ५वीं रचना होनी चाहिए क्योंकि इसके बाद की मलयसुन्दरी चौ० मे उससे पूर्क ५ चौपाई रचने का उल्लेख स्वयं कवि ने किया है।
रत्नचूड मणिचूड़ की प्राचीन कथाको दान-धर्म के माहात्म्य मे कवि ने राजस्थानी पद्य (३८ ढालों) में सकलित किया है। स० १७३६ वसन्तपचमी को उदयपुर मे इसकी रचना हुई। पद्मिनी चरित्र चौ० जिस मन्त्री भागचन्द के आग्रह से बनाई गई थी उसी के आदर से यह चौपाई रची गई है। इसकी प्रशस्ति मे मन्त्री भागचन्द के पुत्र व पौत्रों का अच्छा परिचय दिया गया है। मन्त्री भागचन्द के सम्बन्ध मे ५ पद्य है, उससे उसका महत्व भली-भाँति स्पष्ट है । उसके पुत्र दशरथ, समरथा